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श्रेष्ठ चरित्र ही देश का चित्र बदल सकता है/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

बाल साहित्य मेरी दृष्टि में वही उत्तम है जिसे बड़ों के साथ बच्चे भी अधिक संख्या में पढ़ना पसंद करें| उनकी जिज्ञासा और रुचि हो उस साहित्य को पढ़ने में और यह तभी संभव है जब उसमें कुछ नवीनता और रोचकता होगी | यह सच है कि बाल साहित्य में बाल संसार मुखरित होना चाहिए, जो बच्चो को दादी – नानी की लोरियों सा सम्मोहित कर थपकी देकर स्वप्न लोक में ले जाने की ताकत रखे। कहानियाँ अतीत की गलियों में ले जाकर किस्सा गोई कर हंसी ठिठौली करें , पहेलियाँ दिमागी ताना -बाना बुनते हुए मस्तिष्क के तंतुओं को मजबूत करे। शब्दों संग विविध स्थानों की यात्रा कराए, संस्मरण अतीत की ऊंगली थामे मन को पुलकित करें तो बाल उपन्यास जीवन दर्शन से अवगत कराए, जीवन पथ को सुगम बनाए। उसी साहित्य को बाल साहित्य की श्रेणी में स्थान दिया जाना चाहिए ।

आज देश में जो परिस्थितियाँ है उसका स्वरूप पारिवारिक, धर्म ,अध्यात्म,दर्शन,संस्कार की दृष्टि से प्राचीन समय की अपेक्षा एकदम भिन्न है। कभी चांद पर बुढ़िया के होने को स्वीकार करने वाले बच्चे सवाल करते हैं,प्रमाण चाहते हैं। कोई चमत्कारिक बातें अचानक बच्चो के गले नहीं उतरती कारण वे विज्ञान युग में जी रहे हैं। चाहे पौराणिक संदर्भ ही क्यों न हो उनका तार्किक समाधान जब तक न मिले उन्हें संतोष नहीं होता।ये वो पीढ़ी नहीं जिसे “तर्क करोगे तो नर्क मिलेगा” कह देने मात्र से मुंह पर ताला लग जाता था। आज के बच्चे साहित्य में जीवन को खोजते हैं,कारण आज वे कई पैमानों पर चुनौतियों से जूझ रहे हैं,जिनका समाधान वे चाहते हैं अतः काल्पनिक कथाएं उन्हें सम्मोहित नहीं करती वे यथार्थ पर बात करना चाहते हैं।

कुछ वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश माध्यमिक बोर्ड में पाठ्यक्रम निर्माण के दौरान जब मैं श्रीमद भगवद गीता पर कार्य कर रही थी तब बेटे ने प्रश्न किया था गीता तो महाभारत काल में कही गई थी आज इन बातों से हम बच्चो का क्या वास्ता ? प्रश्न गलत भी नहीं, पाठ्यक्रम में वही साहित्य हो जिसकी उपयोगिता बच्चो को व्यवहारिक जीवन में हो। किंतु मन था जो श्रीमद गीता की उपयोगिता को सिद्ध करना चाहता था बस इसी बात को लेकर चिंतन- मनन किया जिसका परिणाम है यह बाल उपन्यास “कलयुग का अर्जुन” जिसमें प्रयास किया है बेटे की तरह अन्य कई बच्चो के मन में उठे इस प्रश्न का उत्तर दे पाऊं | श्रीमद गीता के प्रति जो संदेह और जिज्ञासा बाल मन में है कि (यह तो बड़ों के पढ़ने का साहित्य हैं इसका हम बच्चो से क्या संबंध) इसका व्यावहारिक पक्ष उनके सामने उनके ही अंदाज में रख सकूं।

प्रश्न उठाता है एक सफल जीवन हम किसे मानते हैं, निःसंदेह आज लोगों ने इसकी परिभाषा अपने अनुरूप गढ़ ली है | उनके अनुसार धन ही देवों का देव है | यदि इसे सत्य भी मन लिया जाय तो क्यों आज धनवान उस शक्ति की शरण में नतमस्तक हैं जो सम्पूर्ण संसार को चलाती है ? मेरी दृष्टि में उत्तम चरित्र ही समृध्दि युक्त सफल सफलता का निर्माण कर सकता है | आज ऐसे चरित्र का प्रतिशत निरन्तर घटता जा रहा है कारण कहीं न कहीं हमारी शिक्षा को जिम्मेदार ठहरता है | कभी बालक के सर्वांगीण विकास (तन,मन,बुध्दि, संस्कार,आध्यात्म, कर्म, व्यवहार,धनार्जन ) आदि को शिक्षा की परिधि में रखा जाता था | किन्तु आज हमने शिक्षा को केवल धनार्जन से जोड़कर उसे एकांगी बना दिया है | सम्भवत: इसी का परिणाम है बढ़ते वृध्दाश्रम, भ्रष्टाचार, संस्कार हीनता …| वह बहुआयामी शिक्षा बच्चो के लिए मल्टीविटामिन का काम करती थी परिणाम बच्चे तन,मन,धन और व्यव्हार से पूर्ण परिपक्व होते थे | कटु है किन्तु सत्य है आज के बच्चे अर्थ की दृष्टि से भले ही पुष्पित पल्लवित हो चुके हों किन्तु संस्कार की दृष्टि से कुपोषित ही रह गये हैं |

इस विषय पर चिंतन-मनन जारी है किन्तु उसकी दिशा कितनी सही है नहीं कहा जा सकता | मेरी दृष्टि में इस विषय को लेकर हमें एक बार पुन: अपने उस समृध्द अतीत की शरण लेना चाहिए जहाँ सही जीवन शिक्षा का उल्लेख है | मेरी दृष्टि में श्रीमद गीता से बढ़कर जीवन जीने की कला हमें  कहीं ओर देखने को नहीं मिलेगी |  बस इसी विचार से बच्चो के बीच कुछ संवाद श्रीमद गीता को लेकर करने का प्रयास है यह उपन्यास |

आशा है यह प्रयोग बाल पाठकों संग मेरे साहित्यिक मित्रों को भी उपयोगी लगेगा  |

लेखक

  • डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’ (वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद) शिक्षा - एम ए अर्थशास्त्र., एम ए हिन्दी, एम एड., पी एच डी हिन्दी. जन्म – शोलापुर महाराष्ट्र अनुभव- महाविद्यालय में प्राचार्य । आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर सक्रियता, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित | मो – 9926481878 संग्रह प्रकाशनः- ( एकल पुस्तकें) शिक्षा एवं साहित्य पर 70 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित लघुरूपक – ( २० पुस्तकें ) साँझा संग्रह – (अनेक ) सम्मान अंतराष्ट्रीय सम्मान – 4 राष्ट्रीय सम्मान – लभगभ 60 से अधिक सम्मान 14 राज्यों से उत्कृष्ट लेखन हेतु सम्मानित | निवास - डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’, 30 सीनियर एम् आई जी , अप्सरा कोम्प्लेक्स A सेक्टर, इंद्रपुरी भेल क्षेत्र भोपाल -462022

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