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भारत-भारती/मैथिलीशरण गुप्त

श्री रामः प्रिय पाठकगण, आज जन्माष्टमी है, आज का दिन भारत के लिए गौरव का दिन है। आज ही हम भारतवासियों को यहाँ तक कहने का अवसर मिला था। कि- जय जय स्वर्गागार-सम भारत-कारागार। पुरुष पुरातन का जहाँ हुआ नया अवतार।। जब तक संसार में भारत वर्ष का अस्तित्व रहेगा, तब तक यह दिन उसकी […]

सैरन्ध्री/मैथिलीशरण गुप्त

सुफल – दायिनी रहें राम-कर्षक की सीता; आर्य-जनों की सुरुचि-सभ्यता-सिद्धि पुनिता। फली धर्म-कृषि, जुती भर्म-भू शंका जिनसे, वही एग हैं मिटे स्वजीवन – लंका जिनसे। वे आप अहिंसा रूपिणी परम पुण्य की पूर्ति-सी, अंकित हों अन्तःक्षेत्र में मर्यादा की मूर्ति-सी। बुरे काम का कभी भला परिणाम न होगा, पापी जन के लिए कहीं विश्राम न […]

स्वदेश संगीत/मैथिलीशरण गुप्त

1. निवेदन राम, तुम्हें यह देश न भूले, धाम-धरा-धन जाय भले ही, यह अपना उद्देश्य न भूले। निज भाषा, निज भाव न भूले, निज भूषा, निज वेश न भूले। प्रभो, तुम्हें भी सिन्धु पार से सीता का सन्देश न भूले। 2. विनय आवें ईश ! ऐसे योग— हिल मिल तुम्हारी ओर होवें अग्रसर हम लोग।। […]

द्वापर/मैथिलीशरण गुप्त

1. मंगलाचरण धनुर्बाण वा वेणु लो श्याम रूप के संग, मुझ पर चढ़ने से रहा राम ! दूसरा रंग। 2. श्रीकृष्ण राम भजन कर पाँचजन्य ! तू, वेणु बजा लूँ आज अरे, जो सुनना चाहे सो सुन ले, स्वर ये मेरे भाव भरे— कोई हो, सब धर्म छोड़ तू आ, बस मेरा शरण धरे, डर […]

हिन्दी कविता/मैथिलीशरण गुप्त

1. जीवन की ही जय है मृषा मृत्यु का भय है जीवन की ही जय है । जीव की जड़ जमा रहा है नित नव वैभव कमा रहा है यह आत्मा अक्षय है जीवन की ही जय है। नया जन्म ही जग पाता है मरण मूढ़-सा रह जाता है एक बीज सौ उपजाता है सृष्टा […]

यशोधरा/मैथिलीशरण गुप्त

मंगलाचरण राम, तुम्हारे इसी धाम में नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ, इसी देश में हमें जन्म दो, लो, प्रणाम हे नीरजनाभ । धन्य हमारा भूमि-भार भी, जिससे तुम अवतार धरो, भुक्ति-मुक्ति माँगें क्या तुमसे, हमें भक्ति दो, ओ अमिताभ ! सिद्धार्थ 1 घूम रहा है कैसा चक्र ! वह नवनीत कहां जाता है, रह जाता है तक्र । पिसो, […]

यशोधरा भाग2/मैथिलीशरण गुप्त

राहुल-जननी 1 घुसा तिमिर अलकों में भाग, जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! जागा नूतन गन्ध पवन में, उठ तू अपने राज-भवन में, जाग उठे खग वन-उपवन में, और खगों में कलरव-राग। जाग, दु:खिनी के सुख, जाग! तात! रात बीती वह काली, उजियाली ले आई लाली, लदी मोतियों से हरियाली, ले लीलाशाली, निज भाग। जाग, दु:खिनी […]

किसान/मैथिलीशरण गुप्त

प्रार्थना यद्यपि हम हैं सिध्द न सुकृती, व्रती न योगी, पर किस अघ से हुए हाय ! ऐसे दुख-भोगी? क्यों हैं हम यों विवश, अकिंचन, दुर्बल, रोगी? दयाधाम हे राम ! दया क्या इधर न होगी ? ।।१।। देव ! तुम्हारे सिवा आज हम किसे पुकारें? तुम्हीं बता दो हमें कि कैसे धीरज धारें? किस […]

जय भारत/मैथिलीशरण गुप्त

निवेदन अर्द्ध शताब्दि होने आई, जब मैंने ‘जयद्रथ-वध’ का लिखना प्रारम्भ किया था। उसके पश्चात् भी बहुत दिनों तक महाभारत के भिन्न-भिन्न प्रसंगों पर मैंने अनेक रचनाएँ कीं। उन्हें लेकर कौरव-पाण्डवों की मूल कथा लिखने की बात भी मन में आती रही परन्तु उस प्रयास के पूरे होने में सन्देह रहने से वैसा उत्साह न […]

साकेत निवेदन/मैथिलीशरण गुप्त

राम, तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है। कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है। समर्पण पितः, आज उसको हुए अष्टाविंशति वर्ष, दीपावली – प्रकाश में जब तुम गए सहर्ष। भूल गए बहु दुःख-सुख, निरानंद-आनंद; शैशव में तुमसे सुने याद रहे ये छंद- “हम चाकर रघुवीर के, पटौ लिखौ दरबार; अब तुलसी का होहिंगे नर के […]

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