बिल्ली रस्ता काटती, होती है बदनाम l
मुझको अपना काम है, उसको अपना काम l1l
हिंदी की चौपाल पर, बैठे चार चिराग |
तय था देंगे रौशनी, लगा रहे हैं आग |2|
लेखक तो लेखक हुआ, बेशक झोला छाप |
पुस्तक तेरी जेब में, जितनी मर्जी छाप |3|
सोते उठते फोन से, होती आँखें चार |
देखो कैसे आ गया, बिस्तर में बाजार |4|
खाली खोखे रह गए, फ़ोकट सारे व्यर्थ |
अर्थ चुरा का ले गया, शब्दों के सब अर्थ |5|
आया है बाजार में, नुस्खा ये नायाब |
रख दो नंगी जांघ पर, बिकने लगे किताब |6|
किस किस से झगड़ा करें, सबके सब हैं चोर |
कोई बेईमान है, कोई रिश्वतखोर |7|
यहाँ वहाँ देखा मिला, बस नंगोँ का देश l
ढकी देह का अब यहाँ, वर्जित हुआ प्रवेश l8l
आफत में राहत मिली, मिलकर हुई डकार |
आधी नेता खा गए, आधी ठेकेदार |9|
कलयुग में कल-बैल की, पड़ी पेट पर मार l
हीरा-मोती घूमते, सड़कों पर बेकार l10l
दो आँसू में बह गए, बैलों के अरमान l
भूस-खली अब कौन दे, कहाँ खेत में धान l11l
खा कर डंडे पीठ पर, भरते दर दर पेट l
कहीं बाघ ने कर लिया, बैलों का आखेट l12l
जब तक पालक थे तभी, तक थे इनके बौस l
आज न पालक है कहीं, और न काँजीहौस l13l
उम्र गंवाई खेत में, फिर भी रहे रखैल l
गायें थी तो जिम गई, कौन जमाता बैल l14l
लो बादल ने खोल दी , फिर गठरी की गीठ |
कीचड़ कीचड़ हो गई , पगडण्डी की पीठ | 15|
बिजली देती धमकियाँ , हवा कर रही छेड़ |
बादल के आंसू गिरे , लपक रहे हैं पेड़ |16|
बादल आये देखने, पर्वत जंगल बाग |
दादुर ,झींगुर गा रहे , मिलकर स्वागत राग |17|
भीगे भीगे दिन हुए , गीली गीली रात |
दीप जला कर चल पड़ी , जुगनू की बारात |18|
बादल से बन प्रेम रस , बरस रही है प्रीत |
रिमझिम बूँदें लिख रहीं , जीवन का संगीत |19|
नदियाँ नाले भर गए , भरे समंदर ताल |
शुष्क धरा की पीठ पर , उग आये हैं बाल | 20|
सावन आया बाग़ में , आई मस्त बहार |
अमलतास ने टांग दी , स्वर्णिम वन्दनवार | 21|
धरती को कागज किया , कर सावन को रंग |
बाग़ बगीचे छाप कर , छापे कीट पतंग | 22|
वृक्षों ने धारण किये , हरे हरे से वस्त्र |
फूलों ने कर धर लिए , कंटक रूपी शस्त्र |23|
बांच रही है गाय माँ , बिखरे हैं सर्वत्र |
आया सावन डाकिया , लेकर ढेरों पत्र |24|
नदियाँ नाले भी गढ़े, बिछा गलीचा सब्ज |
सावन ही पहचानता , है कुदरत की नब्ज |25|
होरी सोया खेत में , खड़े किये हैं कान |
मकई की मेड़ पर , जाग रहा है श्वान |26|
बादल बिजली मिल करे , धरा गगन में शोर |
झूम झूम कर नाचता , बलखाता है मोर | 27|
अम्मा का सिर भीगता , भीग रही है गाय |
दोनों का घर एक सा , कौन सुनेगा हाय |28|
अंत समय में पुत्र के, हाथों मिला न नीर |
हलुआ पूरी किस तरह, खाऊं बिना शरीर |29|
जड़ सूखी तो दे रहे, ज्यों पौधे को खाद |
जीते जी पूछा नहीं, किया मरे का श्राद |30|
कलयुग तेरे गर्भ से, प्रकट सहस्रों राम |
स्वयं सिहांसन जा चढ़े, पाँव पखारे आम |31|
पत्थर की शिवलिंग पर, चढ़ा रहा है क्षीर |
अम्मा भूखी मर गई, बिस्तर आँगन तीर |32|
सुबह हुई फिर चल पड़े, ढूंढ रहे सुनसान |
घर में शौचालय नहीं, मंदिर आलिशान |33|
रिश्तों के बाजार में, खड़ी हो गई खाट |
बेटा शहरी हो गया, भूला घर की बाट |34|
सच्चाई कड़वी लगे, कहता ये नाचीज़ |
बच्चों को चुभने लगे, रिश्तों के ताबीज़ |35|
बेरी जी झाड़ी कहे, आओ चुन लो बेर |
ग्वाल बाल खाने लगे, जर्दा और कुबेर |36|
होरी भूखा मर गया, खेत मरे बिन नीर |
गोबर भिखमंगा हुआ, धनिया लीरोंलीर |37|
भेड़ें तो भेड़ें हुई, क्या काली क्या श्वेत |
बेकाबू दोनों चरें, मालिक तेरे खेत |38|
कौन दूध हो पूछते, और कौन सा रक्त |
छांट छांट कर कंजकें, पूज रहे हैं भक्त |39|
कटे फटे कपड़े बने, खानदान पहचान |
आगे पीछे जींस में, कितने रोशनदान |40|
बैठी चार सहेलियां, चारों ही हैं ओन |
हँसी ठिठोली खा गया, नेट और ये फोन |41|
पान मसाला चाब कर, पीक थूकते लाल |
अंदर अंदर खा रहा, मुख में बैठा काल |42|
अम्मा को लिख भेज दो, थोड़ी दुआ सलाम |
उसके तन –मन को लगे, ज्यों केसर बादाम |43|
मोटे चावल में मिला, दिया जरा सा नीर |
माँ के हाथों से बनी, बिना दूध की खीर |44|
अम्मा जल्दी उठ गई, आँगन रही बुहार |
बीन बीन कर रख लिया, सब बच्चों का प्यार |45|
सूरज खिड़की पर खड़ा, चमक रहा है भाल |
अम्मा ने आवाज दी, उठ जा मेरे लाल |46|
हो कर कवि ऋतुराज की, की मैं ने तफ़्तीश l
सरसों की कुछ डालियाँ, मिली झुकाए शीश l47l
एक पढ़े दो घर पढ़े, दो-दो मिलकर चार |
बेटी को पढ़वाइए, पढ़े सकल संसार |48|
बेटा घर की शान तो, बेटी घर का मान |
बेट-बेटी एक है , कर दो ये ऐलान |49|
यह तन गेह कुबेर का, यही अयोध्या धाम |
श्रम बल से धन लक्ष्मी, मर्यादा से राम |50|
दीपक से कह दीजिये, रख रोशन हर धाम |
क्या जाने किस ओर से, आ जाएँ श्री राम |51|
आईं नूतन कोंपलें, नव पल्लव संकेत |
कनक ऋचाएं हो गईं, वेद पृष्ठ हर खेत |52|
जाने वाले साल ने, छूकर सबके पाँव |
ताला-कुंजी सौंप दी, छोड़ दिया है गाँव |53|
गोरी तेरे शर्म से, गाल हो गए लाल |
या होली का रंग है, या यौवन की चाल |54 |
फूल फूल पर है फ़िदा, फूल फूल का यार l
क्यों सबको ही चुभ रहा, फूल फूल का प्यार l55l
आलस आकर घुस गया, घर में चारों ओर l
मन के आँगन में पड़ा, मरा हुआ मन मोर l56l
जब जब हम मिलते रहे, बातें होतीं खूब |
मैं उसका महबूब हूँ, वो मेरा महबूब |57|
अंग्रेजी हँसती रही, होती रही प्रयोग।
हिन्दी गौरव पा गए, अंग्रेजी के लोग।58।
तेरी जड़ तेरी जमीं, उसके सिर पर ताज़ |
हिंदी तेरे देश में, अंग्रेजी का राज |59|
काली झिलमिल ओढ़नी, मुखड़े पर है धूप।
जग सारा मोहित हुआ, तेरा रूप अनूप ।60।