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दोहे/अनन्त आलोक

बिल्ली रस्ता काटती, होती है बदनाम l

मुझको अपना काम है, उसको अपना काम l1l

हिंदी की चौपाल पर, बैठे चार चिराग |

तय था देंगे रौशनी, लगा रहे हैं आग |2|

लेखक तो लेखक हुआ, बेशक झोला छाप |

पुस्तक तेरी जेब में, जितनी मर्जी छाप |3|

सोते उठते फोन से, होती आँखें चार |

देखो कैसे आ गया, बिस्तर में बाजार |4|

खाली खोखे रह गए, फ़ोकट सारे व्यर्थ |

अर्थ चुरा का ले गया, शब्दों के सब अर्थ |5|

आया है बाजार में, नुस्खा ये नायाब |

रख दो नंगी जांघ पर, बिकने लगे किताब |6|

किस किस से झगड़ा करें, सबके सब हैं चोर |

कोई बेईमान है, कोई रिश्वतखोर |7|

यहाँ वहाँ देखा मिला, बस नंगोँ का देश l

ढकी देह का अब यहाँ, वर्जित हुआ प्रवेश l8l

आफत में राहत मिली, मिलकर हुई डकार |

आधी नेता खा गए, आधी ठेकेदार |9|

कलयुग में कल-बैल की, पड़ी पेट पर मार l

हीरा-मोती घूमते, सड़कों पर बेकार l10l

दो आँसू में बह गए, बैलों के अरमान l

भूस-खली अब कौन दे, कहाँ खेत में धान l11l

खा कर डंडे पीठ पर, भरते दर दर पेट l

कहीं बाघ ने कर लिया, बैलों का आखेट l12l

जब तक पालक थे तभी, तक थे इनके बौस l

आज न पालक है कहीं, और न काँजीहौस l13l

उम्र गंवाई खेत में, फिर भी रहे रखैल l

गायें थी तो जिम गई, कौन जमाता बैल l14l

लो बादल ने खोल दी , फिर गठरी की गीठ |

कीचड़ कीचड़ हो गई , पगडण्डी की पीठ | 15|

बिजली देती धमकियाँ , हवा कर रही छेड़ |

बादल के आंसू गिरे , लपक रहे हैं पेड़ |16|

बादल आये देखने, पर्वत जंगल बाग |

दादुर ,झींगुर गा रहे , मिलकर स्वागत राग |17|

भीगे भीगे दिन हुए , गीली गीली रात |

दीप जला कर चल पड़ी , जुगनू की बारात |18|

बादल से बन प्रेम रस , बरस रही है प्रीत |

रिमझिम बूँदें लिख रहीं , जीवन का संगीत |19|

नदियाँ नाले भर गए , भरे समंदर ताल |

शुष्क धरा की पीठ पर , उग आये हैं बाल | 20|

सावन आया बाग़ में , आई मस्त बहार |

अमलतास ने टांग दी , स्वर्णिम वन्दनवार | 21|

धरती को कागज किया , कर सावन को रंग |

बाग़ बगीचे छाप कर , छापे कीट पतंग | 22|

वृक्षों ने धारण किये , हरे हरे से वस्त्र |

फूलों ने कर धर लिए , कंटक रूपी शस्त्र |23|

बांच रही है गाय माँ , बिखरे हैं सर्वत्र |

आया सावन डाकिया , लेकर ढेरों पत्र |24|

नदियाँ नाले भी गढ़े, बिछा गलीचा सब्ज |

सावन ही पहचानता , है कुदरत की नब्ज |25|

होरी सोया खेत में , खड़े किये हैं कान |

मकई की मेड़ पर , जाग रहा है श्वान |26|

बादल बिजली मिल करे , धरा गगन में शोर |

झूम झूम कर नाचता , बलखाता है मोर | 27|

अम्मा का सिर भीगता , भीग रही है गाय |

दोनों का घर एक सा , कौन सुनेगा हाय |28|

अंत समय में पुत्र के, हाथों मिला न नीर |

हलुआ पूरी किस तरह, खाऊं बिना शरीर |29|

जड़ सूखी तो दे रहे, ज्यों पौधे को खाद |

जीते जी पूछा नहीं, किया मरे का श्राद |30|

कलयुग तेरे गर्भ से, प्रकट सहस्रों राम |

स्वयं सिहांसन जा चढ़े, पाँव पखारे आम |31|

पत्थर की शिवलिंग पर, चढ़ा रहा है क्षीर |

अम्मा भूखी मर गई, बिस्तर आँगन तीर |32|

सुबह हुई फिर चल पड़े, ढूंढ रहे सुनसान |

घर में शौचालय नहीं, मंदिर आलिशान |33|

रिश्तों के बाजार में, खड़ी हो गई खाट |

बेटा शहरी हो गया, भूला घर की बाट |34|

सच्चाई कड़वी लगे, कहता ये नाचीज़ |

बच्चों को चुभने लगे, रिश्तों के ताबीज़ |35|

बेरी जी झाड़ी कहे, आओ चुन लो बेर |

ग्वाल बाल खाने लगे, जर्दा और कुबेर |36|

होरी भूखा मर गया, खेत मरे बिन नीर |

गोबर भिखमंगा हुआ, धनिया लीरोंलीर |37|

भेड़ें तो भेड़ें हुई, क्या काली क्या श्वेत |

बेकाबू दोनों चरें, मालिक तेरे खेत |38|

कौन दूध हो पूछते, और कौन सा रक्त |

छांट छांट कर कंजकें, पूज रहे हैं भक्त |39|

कटे फटे कपड़े बने, खानदान पहचान |

आगे पीछे जींस में, कितने रोशनदान |40|

बैठी चार सहेलियां, चारों ही हैं ओन |

हँसी ठिठोली खा गया, नेट और ये फोन |41|

पान मसाला चाब कर, पीक थूकते लाल |

अंदर अंदर खा रहा, मुख में बैठा काल |42|

अम्मा को लिख भेज दो, थोड़ी दुआ सलाम |

उसके तन –मन को लगे, ज्यों केसर बादाम |43|

मोटे चावल में मिला, दिया जरा सा नीर |

माँ के हाथों से बनी, बिना दूध की खीर |44|

अम्मा जल्दी उठ गई, आँगन रही बुहार |

बीन बीन कर रख लिया, सब बच्चों का प्यार |45|

सूरज खिड़की पर खड़ा, चमक रहा है भाल |

अम्मा ने आवाज दी, उठ जा मेरे लाल |46|

हो कर कवि ऋतुराज की, की मैं ने तफ़्तीश l

सरसों की कुछ डालियाँ, मिली झुकाए शीश l47l

एक पढ़े दो घर पढ़े, दो-दो मिलकर चार |

बेटी को पढ़वाइए, पढ़े सकल संसार |48|

बेटा घर की शान तो, बेटी घर का मान |

बेट-बेटी एक है , कर दो ये ऐलान |49|

यह तन गेह कुबेर का, यही अयोध्या धाम |

श्रम बल से धन लक्ष्मी, मर्यादा से राम |50|

दीपक से कह दीजिये, रख रोशन हर धाम |

क्या जाने किस ओर से, आ जाएँ श्री राम |51|

आईं नूतन कोंपलें, नव पल्लव संकेत |

कनक ऋचाएं हो गईं, वेद पृष्ठ हर खेत |52|

जाने वाले साल ने, छूकर सबके पाँव |

ताला-कुंजी सौंप दी, छोड़ दिया है गाँव |53|

गोरी तेरे शर्म से, गाल हो गए लाल |

या होली का रंग है, या यौवन की चाल |54 |

फूल फूल पर है फ़िदा, फूल फूल का यार l

क्यों सबको ही चुभ रहा, फूल फूल का प्यार l55l

आलस आकर घुस गया, घर में चारों ओर l

मन के आँगन में पड़ा, मरा हुआ मन मोर l56l

जब जब हम मिलते रहे, बातें होतीं खूब |

मैं उसका महबूब हूँ, वो मेरा महबूब |57|

अंग्रेजी हँसती रही, होती रही प्रयोग।

हिन्दी गौरव पा गए, अंग्रेजी के लोग।58।

तेरी जड़ तेरी जमीं, उसके सिर पर ताज़ |

हिंदी तेरे देश में, अंग्रेजी का राज |59|

काली झिलमिल ओढ़नी, मुखड़े पर है धूप।

जग सारा मोहित हुआ, तेरा रूप अनूप ।60।

लेखक

  • अनन्त आलोक जन्म : 28 अक्तूबर 1974 बायरी (श्री रेणुका जी) हिमाचल प्रदेश शिक्षा : वाणिज्य स्नातक, शिक्षा स्नातक, स्नातकोत्तर हिंदी सम्प्रति : हिमाचल सरकार में अध्यापन | पुस्तकें : तलाश (काव्य संग्रह), यादो रे दिवे (सिरमौरी में हाइकु अनुवाद), मिस 420 ऑडियो उपन्यास, पॉकेट ऍफ़. एम्. पर उपलब्ध एवं चर्चित | स्कैंडल पॉइंट और अन्य कहानियाँ 2023, प्रकाशित और चर्चा में | प्रसारण : दूरदर्शन, आकाशवाणी एवं प्राइवेट टीवी चैनल पर साक्षात्कार, कवितायेँ, ग़ज़लें, आलेख एवं वार्ता प्रसारित | प्रकाशन : हंस, कथा क्रम, वागर्थ, वीणा, लहक, बया, विपाशा, अहा ! जिन्दगी, सोमसी, हिमभारती, हिमप्रस्थ, बाल हंस, बाल भारती, बाल किलकारी, आदि शताधिक पत्र पत्रिकाओं एवं ऑनलाइन पत्रिकाओं में कहानियां, कवितायेँ, ग़ज़लें, लघुकथाएं, बाल कथाएं , बाल कवितायेँ, आलेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित एवं असंख्य संकलनों में संकलित| विशेष : सिरमौरी में लिखे लोकगीत प्रसिद्ध लोकगायकों द्वारा गायन एवं फिल्मांकन | कवि सम्मेलनों ,मुशायरों एवं लघुकथा सम्मेलनों में निरंतर भागीदारी |सिरमौरी कहानी –पापड़ा का हिंदी अनुवाद एवं साहित्य अकादमी दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक में संकलन | हिमाचली संस्कृति में रूचि एवं निरंतर लेखन | हिमाचली लोकगीत- गंगी का विशेष शास्त्रीय अध्ययन एवं शोध | सम्मान : अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन जनकपुर -नेपाल में प्रस्तुति एवं विशिष्ट प्रतिभा सम्मान | संपर्क : साहित्यालोक बायरी डाकघर एवं तहसील ददाहू जिला सिरमौर हिमाचल प्रदेश 173022 मोब 9418633772

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