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‘जीवन के राग-विराग’/अनिता रश्मि

   मणिकर्णिका घाट! सामने जलती हुई एक ताजी चिता। सीढ़ियों पर बैठे चंद लोग। उनमें वह भी…निशांत!…निराश ! हताश ! उसके हाथ में एक शहनाई है। वह शहनाई को सीने से लगाए अज़ब असमंजस में घिरा है। घर से शहनाई उठाकर ले आया था। मात्र इसलिए कि जब बजानेवाला ही नहीं रहा, तो उसकी सबसे […]

ईश्वर को चुनौती/अनिता रश्मि

उसकी हथेलियों पर आ बैठी धूप गौरैया सी, जब उसने खिड़की के सामने अपनी हथेलियाँ फैलाईं। उसने झट दोनों हथेलियाँ बंद कर लीं। मुट्ठी में नहीं समा पाई धूप। छिटक कर बाहर आ गई। बंद मुट्ठी के ऊपर। उसने पिछले महीने ही फ्लैट में गृहप्रवेश पूजा की थी। तब से धूप के एक-एक कतरे के […]

हिरणी/अनिता रश्मि

जंगल से बाहर आते ही कोमल, मासूम, खूबसूरत आँखोंवाली हिरणी शिकारियों से घिर गई। भागने की कोशिश करती। और घिर जाती। उसने अपने अंदर की ताकत को जगाया। शिकारियों को अपने सींग से घायल कर कुलांचें मारती उनके चंगुल से नौ दो ग्यारह! जंगल में वापस आकर सुस्ताने लगी। बैठ गई। अभी भी आँखों में […]

प्रश्न बिजूका का/अनिता रश्मि

खेतों में खड़ा हँसता है बिजूका खेतिहर की नादानी पर आज कहाँ बचे अब वे पागल परिंदे जिनसे भय था फसलों के नष्ट हो जाने का धान, गेहूँ, चना, दालों को चुग-चुग खाने का इस ढीठ समय में अब थोड़े-मोड़े बचे परिंदे डरते कहाँ हैं एकदम पाँवों के पास जम हैं दानों को चुगते आँखों […]

अभी/अनिता रश्मि

सब अपने-अपने कमरों में लटके हुए शान से अपने-अपने सलीबों पर मोबाइल में व्यस्त मोबाइल, लैपटाॅप पर घर के एकांत कोनों से चिपके कितने एकाकी हैं सब विकास की ऊँचाइयाँ सहेजते हुए मुट्ठी में अपनी एकाकी जीवन की सजा भोग रहे वे भीड़ के बीच भीड़ से अलग-थलग स्क्रीन की रौशनी से चकित, ठहरे हुए […]

हम/अनिता रश्मि

वह जो खेतों में बड़ी हसरतों से छींट रहा है बीज कर रहा बुआई है अपनी आस की गठरी अपने पिचके पेट पर बाँधे हुए उस अँकुराती फसल को सहेजता पालता बढ़ाता वह एक उम्मीद के सहारे है हमारी उदर पूर्ति में है उसकी भूख और पेट भरने का अनोखा हिसाब-किताब खेतों के पैर भारी […]

ताखे पर दीया/अनिता रश्मि

चलो पूरी दुनिया में दीया जला आएँ उम्मीद का प्रेम की बाती को मन के तेल में डुबोकर इससे पूर्व कि हो जाए देर जला आएँ दीया वहाँ ओसारे पर, छोटे से ताखे पर भी जो खुलती हुई बाहरी दीवार पर बना है या फिर उस दालान पर सड़क के ठीक किनारे, जहाँ से गुजरेंगे […]

बेतरा/अनिता रश्मि

बाँधकर बेतरा में अपने छउआ-पुता को ये जो शहर की छाती पर सँवारने शहर को घूम रही हैं एक माँ भी हैं बच्चा कब छाती पर, कब पीठ से बँधे बेतरा में समा कंगारू बन जाएगा कह सकते नहीं, ईंट भट्ठों, भवनों सहित सारे बाजार सड़क-गली में छा गईं ये श्रम का अद्भुत ईमानदार प्रतीक […]

ख़ुश्बू चुराते बच्चे/अनिता रश्मि

कोलतार चुपड़ी काली सड़क से दौड़ते हुए आ मिलते वे बच्चे सवेरे-सवेरे जो फूटती किरण के साथ गए थे सुंदर, साफ, उजर यूनिफाॅर्म में कई स्कूलों में पंक्तिबद्ध अपने-अपने बाबा का हाथ थामे गँवीली पगडंडियों से गुजरकर । दुपहरिया होते घर लौटते ही बाबा के संग, छोड़ उन्हें ओसारे पर भागकर आ गए हैं पगडंडी, […]

अब चुप न रहो/अनिता रश्मि

सारे भेद खोलने दो कविता कवियों के कोने अंतरे में घुसकर किसान की आत्महत्या बेटी की भ्रूण हत्या बेटों के आत्मघाती हमले, पँख पसारे बगूलों सा दो फैलने सारे राग-विराग समय के बेटियों ने कैसे आँचल को बना लिया है परचम सुपुत्रों की कैसे खड़ी हो गई लंबी फौज कैसे धरित्री ‘औ’ आकाश सम माता-पिता […]

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