अंदर सौम्य स्वभाव का,जब विस्तृत आकाश ।
तब रिश्तों में धुंध को, करता कौन तलाश ।।-1
गरज-भाव ने जब किया, छल-बल को स्वीकार ।
तब अतिवादी सोच का, हुआ और विस्तार ।।-2
मैंने तो सच ही कहा, लगा मुझे जो ठीक ।
ठहर न पाया किंतु मैं, अपनों के नजदीक ।।-3
असतभाव,अतिवाद की, हुई धार जब तेज़ ।
तब रिश्तों की भीड़ को, किसने रखा सहेज ।।-4
साँस-साँस सद्भाव की, देती जहाँ सुगंध ।
भाता वहाँ स्वभाव को, लिखना नेह-निबंध ।।-5
निठुर भाव-व्यवहार से, हैं जिसके संबंध ।
कब भायी अतिवाद को, मानवता की गंध ।।-6
मुखर हुई जन-चेतना, जागा सत्य-स्वभाव ।
रिश्तों में मृदुभाव का, जब आया ठहराव ।।-7
छल-प्रपंच अतिवाद ने, जब खोला संदूक ।
निठुर भाव-व्यवहार से, हुई न कोई चूक ।।-8
उम्मीदों ने जब छुए, सच्चाई के पाँव ।
श्रमजीवी संवाद से, महका सारा गाँव ।।-9
मिलन-भाव व्यवहार की, जब चाहत बे-नूर ।
कौन किसी के पास तब, कौन किसी से दूर ।।-10
गरज-भरे संवाद से, जहाँ इरादे स्याह ।
औरों के दुख-दर्द की,वहाँ किसे परवाह ।।-11
गाँव-गली,परिवार में, जहाँ दृष्टि बे-आब ।
पनपेगा निश्चय वहाँ, रिस्तों में तेज़ाब ।।-12
याद राम शर्मा