अब न बनारस की सुबह अब न अवध की शाम।
राजनीति करने लगी सड़कों पर व्यायाम।1।
कैची के दो फल हुए नेता अफ़सर एक।
प्रजातंत्र की ओढ़नी रहे काटकर फेंक।2।
काट बरगदों की जड़ें करते हैं उद्योग।
गमलों में बोने लगे बौनेपन को लोग।3।
यह जहरीली बावड़ी इसमें पलते नाग।
खेला करते थे यहां हिलमिल पुरखे फाग।4।
पंचसितारा गांव के जब तुम बने प्रधान।
चलीं गोलियां रात-दिन मारे गए जवान।5।
जलीं आयतें देश में जले संहिता पाठ।
मंदिर मस्जिद जल रहे कुर्सी करती ठाठ।6।
रंग ले चादर ख़ून से क्यों उदास रंगरेज।
ख़ून बह रहा मुफ़्त में भाव रंग का तेज।7।
रोज महाभारत कथा रोज़ मृत्यु संगीत।
काल भैरवी नाचती समय सुनाता गीत।8।
गीध कर रहे इनदिनों रावणवध का स्वांग।
ठगी जा रही जानकी संत छानते भांग।9।
नचिकेता से खुश हुए तो बोले यमराज।
घर कपड़ा रोटी न कह स्वर्ग मांग ले आज।10।
हम हैं यह सौभाग्य है समय बड़ा ही ढीठ।
चार चाम की चाबुकें एक अश्व की पीठ।11।
ऐसी हो प्रभु की कृपा खाली रहे न जेब।
घर कपड़ा रोटी मिले भले न हो पाज़ेब।12।
भारतेन्दु मिश्र