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अब न बनारस की सुबह अब न अवध की शाम/भारतेन्दु मिश्र

अब न बनारस की सुबह अब न अवध की शाम।

राजनीति करने लगी सड़कों पर व्यायाम।1।

कैची के दो फल हुए नेता अफ़सर एक।      

प्रजातंत्र की ओढ़नी रहे काटकर फेंक।2।

काट बरगदों की जड़ें करते हैं उद्योग।

गमलों में बोने लगे बौनेपन को लोग।3।

यह जहरीली बावड़ी इसमें पलते नाग।

खेला करते थे यहां हिलमिल पुरखे फाग।4।

पंचसितारा गांव के जब तुम बने प्रधान।

चलीं गोलियां रात-दिन मारे गए जवान।5।

जलीं आयतें देश में    जले  संहिता पाठ।

मंदिर मस्जिद जल रहे कुर्सी करती ठाठ।6।

रंग ले चादर ख़ून से    क्यों उदास रंगरेज।

ख़ून बह रहा मुफ़्त में भाव रंग का तेज।7।

रोज महाभारत कथा  रोज़ मृत्यु संगीत।

काल भैरवी नाचती  समय सुनाता गीत।8।

गीध कर रहे इनदिनों रावणवध का स्वांग।

ठगी जा रही जानकी  संत छानते भांग।9।

नचिकेता से खुश हुए    तो बोले यमराज।        

घर कपड़ा रोटी न कह स्वर्ग मांग ले आज।10।

हम हैं यह सौभाग्य है समय बड़ा ही ढीठ।

चार चाम की चाबुकें   एक अश्व की पीठ।11।

ऐसी हो प्रभु की कृपा खाली रहे न जेब।

घर कपड़ा रोटी मिले  भले न हो पाज़ेब।12।

भारतेन्दु मिश्र

लेखक

  • भारतेन्दु मिश्र जन्म- 5 नवंबर 1959 लखनऊ शिक्षा- एम ए पीएच डी प्रकाशित कृतियाँ- पारो, कालाय तस्मै नमः अभिनवगुप्तपादाचार्य, अनुभव की सीढ़ी, आलोचना- अमरुशतक का साहित्यशास्त्रीय अध्ययन, भरत कालीन कलाएं कथा- कुलांगना, नई रोसनी, चन्दावती, नाटक- शास्त्रार्थ, मरे हुए लोग, लड़की की जात, दिल्ली चलो जीवनी- भारतीय साहित्य के निर्माता ‘बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस’ , त्रिलोचन शास्त्री सम्मान- साहित्य कला परिषद, दिल्ली सरकार द्वारा ‘दिल्ली चलो’ नाटक के लिए, नाटक लेखन पुरस्कार, हिंदी अकादमी, दिल्ली, डॉ. रामकुमार वर्मा बाल नाटक लेखन सम्मान, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ सम्पर्क- सी-45 वाई-4 दिलशाद गार्डन, दिल्ली 110095

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