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घर बनाने की/मो. शकील अख़्तर

मिली जो मुझ को ख़बर ज़ल्ज़लों के आने की
तमन्ना जाग उठी मुझ में घर बनाने की

अजब है लज्ज़त ए इसियां सराए गीती में
कि ख़्वाहिशात नहीं अब जहां से जाने की

मैं बाद ए तुन्द की आवारगी कुचल दूंगा
क़सम उठाई है मैं ने दिए जलाने की

मैं दिल के ज़ख़्म के अन्सर को रख रहा हूं हरा
कि अब न कोई हिमाक़त हो दिल लगाने की

उलझ के रह गई ज़ुल्फ़े हयात अब मेरी
अज़ल से ज़ीस्त की फ़ितरत है रूठ जाने की

ये किस अदा से शबे ग़म गुज़ार दी मैं ने
हर एक लम्हा क़सम खाई मुस्कुराने की

किया है भूक ने जब जब्र तो हुई है दफ़्न
मताए हुरमते आंगन कई घराने की

यहां मैं आलम ए बरज़ख़ की रहगुज़र में हूं
क़ज़ा को रोज़ ज़रूरत है आबो दाने की

ये ज़िन्दगी है मेरी या क़बाए मुफ़्लिस है
कि जिस को झांकती है हर नज़र ज़माने की

लिपट के यादों से अख़्तर मैं रो नहीं सकता
सज़ा मिली है मुझे ज़ब्त आज़माने की

मो. शकील अख़्तर

मआनी
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इसियां – गुनाह
गीती – दुनिया
बाद ए तुन्द – आंधी
हिमाक़त – बेवक़ूफ़ी
अज़ल – शुरू
मताअ – सरमाया,पूंजी
बरज़ख़ – मौत के बाद का अरसा
क़बा  – एक लिबास

लेखक

  • संक्षिप्त परिचय नाम : मो. शकील अख़्तर तख़ल्लुस :अख़्तर जन्म : 04.02.1955 पता: उर्दू बाज़ार ,दरभंगा           बिहार 846004 कार्य :  सेवा निवृत्त बैंक प्रबंधक रचना: विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में                 प्रकाशित            दो साझा ग़ज़ल संग्रहों में प्रकाशित  कई ग़ज़लें           एक ग़ज़ल संग्रह " एहसास की ख़ुशबू" नाम से,            जिज्ञासा प्रकाशन , ग़ाज़ियाबाद द्वारा प्रकाशित

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