इक ज़लज़ला सुकूत का तनहाईयों में है
कितना सुकून इश्क़ की रुसवाईयों में है
होते रहें तवील निगाहों के फ़ासले
दिल का मिलन तो हिज़्र की सच्चाइयों में है
मुश्किल नहीं है दिल के शबिस्तान का सफ़र
मंज़िल ख़्याल ए हुस्न की राअनाईयों में है
तय हो गया जबीं से लबों का भी अब सफ़र
मंज़िल मेरी तो हुस्न की गहराईयों में है
सब से बड़ा फ़रेब है दुनिया की ज़िन्दगी
दुनिया तो चंद रोज़ की शहनाईयों में है
शबनम को लब तरस रहे ऐसी है तिश्रनगी
आबे हयात ज़र्फ़ की गहराइयों में है
घुलता है अब निगाहों में निस्फ़ुन निहार मेहर
इतनी तपिश जमाल की अंगड़ाईयों में है
करने लगे हैं लोग गुनह की वज़ाहतें
पाकीज़गी निगाहों की आराईयों में है
होगा रक़म भी क्या क्या सहीफ़ा ए जान पर
देखें कमाल ए वस्फ़ क्या शैदाइयों में है
अख़्तर को है गुमां कि अदब का है वो निसाब
लेकिन ग़ज़ल तो क़ाफिया पैमाईयों में है
मो. शकील अख़्तर