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इश्क़ की रुसवाईयों में है/मो. शकील अख़्तर

इक ज़लज़ला सुकूत का तनहाईयों में है
कितना सुकून इश्क़ की रुसवाईयों में है

होते रहें तवील निगाहों के फ़ासले
दिल का मिलन तो हिज़्र की सच्चाइयों में है

मुश्किल नहीं है दिल के शबिस्तान का सफ़र
मंज़िल ख़्याल ए हुस्न की राअनाईयों में है

तय हो गया जबीं से लबों का भी अब सफ़र
मंज़िल मेरी तो हुस्न की गहराईयों में है

सब से बड़ा फ़रेब है दुनिया की ज़िन्दगी
दुनिया तो चंद रोज़ की शहनाईयों में है

शबनम को लब तरस रहे ऐसी है तिश्रनगी
आबे हयात ज़र्फ़ की गहराइयों में है

घुलता है अब निगाहों में निस्फ़ुन निहार मेहर
इतनी तपिश जमाल की अंगड़ाईयों में है

करने लगे हैं लोग गुनह की वज़ाहतें
पाकीज़गी निगाहों की आराईयों में है

होगा रक़म भी क्या क्या सहीफ़ा ए जान पर
देखें कमाल ए वस्फ़ क्या शैदाइयों में है

अख़्तर को है गुमां कि अदब का है वो निसाब
लेकिन ग़ज़ल तो क़ाफिया पैमाईयों  में  है

मो. शकील अख़्तर

लेखक

  • संक्षिप्त परिचय नाम : मो. शकील अख़्तर तख़ल्लुस :अख़्तर जन्म : 04.02.1955 पता: उर्दू बाज़ार ,दरभंगा           बिहार 846004 कार्य :  सेवा निवृत्त बैंक प्रबंधक रचना: विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में                 प्रकाशित            दो साझा ग़ज़ल संग्रहों में प्रकाशित  कई ग़ज़लें           एक ग़ज़ल संग्रह " एहसास की ख़ुशबू" नाम से,            जिज्ञासा प्रकाशन , ग़ाज़ियाबाद द्वारा प्रकाशित

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