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छोड़ प्रलय के राग पुराने/राहुल द्विवेदी स्मित’

छोड़ प्रलय के राग पुराने, चलो सृजन के गान सुनायें।
बैठ रात की इस चौखट पर, आओ गीत भोर के गायें।।

किसने फूँकी सारी बस्ती, यह विचार का विषय नहीं है।
कितने घर, दालान जल गये, चर्चाओं का समय नहीं है।
इस विनाश के दामन में ही, नव निर्माण छुपा होता है
विध्वंसों की राख उठाकर, चलो सृजन के खेत उगायें।

सूरज चाँद सितारों को भी, बदली आकर ढक लेती है।

शक्तिमान को पल दो पल में, शक्तिहीन सा कर देती है।
इसका अर्थ नहीं है उनका, तेज शून्य ही रह जाता है
आओ हाथ बढ़ाकर अपने, हम बदली की परत हटायें।

समय मिला तो पृष्ठ पलटकर, पीड़ा का अनुवाद करेंगे।
बीते कल का रुदन उठाकर, टूटे सपने याद करेंगे।
किन्तु अभी तो समय नहीं है, हमको कुछ सपने गढ़ने हैं
चलो समय की ईंटें चुनकर, हम भविष्य का महल बनायें।।

राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

लेखक

  • राहुल द्विवेदी ‘स्मित’ शिक्षा -- एम.ए.,बी.एड. प्रकाशन एवं प्रसारण-- गीत संकलन: पुनः युधिष्ठिर छला गया है अनेक साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, ई- पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन एवं दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण। सम्मान- हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान-2021 उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान विशेष-- उद्घोषक, आकाशवाणी लखनऊ (लोकायन,खेती किसानी) एवं रेडियो जंक्शन

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