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ईनाम/ शुचि ‘भवि’

आज सुब्ह-सुब्ह अख़बार की तरह मीना आयी थी।वेदिका को अंदेशा तो था कि वह आएगी ज़रूर, परन्तु इतनी सुब्ह, यह न सोचा था उसने।”नमस्ते मीना , कैसी हो।सब कुशल है न”, वेदिका ने दरवाज़ा खोलते हुए पूछा और मीना को आँगन के झूले तक ले आयी।

झूले पर बैठते हुए मीना बोली, “आपने बिल्कुल सही कहा था दीदी, प्रणय बिल्कुल वैसा था जैसा आपने बताया था, बच गए हम लोग वरना जीवन भर की जमा पूँजी के साथ साथ बेटी की ख़ुशियाँ भी लुटा देते।मुश्किल तो बहुत था, मगर मैंने हिम्मत कर बारात लौटा दी।ये पच्चीस हजार रुपये आपके, फिर यदि बेटी की शादी हुई तो ले लूँगी”,मीना ने रुपये वेदिका की तरफ़ बढ़ा दिए।”अच्छा दीदी, आपको कैसे पता चला कि दूल्हा पागल है, हम लोग तो नहीं पहचान पाए थे?” वेदिका ,मीना के भोलेपन पर मुस्कुरा दी और उसने मीना से कहा, “मैं साइकेट्रिस्ट हूँ मीना, मेरे लिए कठिन नहीं था पहचानना मगर जो क़दम तुमने जयमाल हो जाने के बाद इतनी दृढ़ता से,  मात्र मुझपर विश्वास कर उठाया, वो मेरे लिए भी शायद आसान नहीं होता उठाना यदि मैं तुम्हारी जगह होती।”वेदिका ने चाय का कप मीना को पकड़ाते हुए पूछा, तुम्हें कब पता चला कि प्रणय की दिमाग़ी हालत ठीक नहीं है? “आप जयमाल के बाद मुझसे मिलकर घर आ गयीं थी, साहब को नाईट शिफ्ट ड्यूटी पर जाना था इसलिए, फिर मैंने बेटी को मंच से उतार कर घर भिजवा दिया और  माइक पर बुलवा दिया कि यह शादी नहीं होगी। तब वर पक्ष के बहुत से लोग हंगामा करने लगे लेकिन कुछ मेरे पास आए और बोले, बच गयी तुम्हारी बेटी वरना पागल के साथ जीवन बिताती।” आँसू पोछते हुए मीना ने कहा,

“दीदी, अब आयी हूँ तो काम करके ही चली जाऊँगी।”

नहीं मीना, अभी घर जाओ,  बेटी को इस वक़्त तुम्हारी ज़रूरत है, दो-चार रोज़ में मेहमानों के जाने के बाद आ जाना। ये पाँच हजार रख लो, कल शादी में देने के लिए ले गयी थी, मगर अब तुम्हें दे रही हूँ तुम्हारी बहादुरी का ईनाम।

लेखक

  • शुचि 'भवि' पिता - डॉ.त्रिलोकी नाथ क्षत्रिय माता-श्रीमती सुदेश क्षत्रिय जन्मतिथि- 24 नवंबर शिक्षा - एम.एस. सी.(इलेक्ट्रॉनिक्स, गोल्डमेडलिस्ट), एम. ए. ( हिंदी), बी.एड. सम्प्रति - अध्यापन,डिपार्टमेंट हेड(फ़िज़िक्स) प्रकाशित कृतियाँ - 'मेरे मन का गीत' (ओ३म् दोहा चालीसा), 'बाँहों में आकाश' (दोहा सतसई), "सबसे अच्छा काल" (बाल दोहा शतक), "ख़्वाबों की ख़ुश्बू" (काव्य संग्रह), "आर्यकुलम् की नींव"(महर्षि दयानंद दोहा शतक), "मसाफ़त-ए-ख़्वाहिशात" (ग़ज़ल संग्रह), "सबमें हैं जगदीश" ( नानक चालीसा), " ज़र्द पत्ते और हवा" (लघुकथा संग्रह), "हेतवी" (उपन्यास), छंद फ़ुलवारी(छंद संग्रह) अन्य प्रकाशन विवरण:- (i) 'दोहा एकादशी', 'दोहा दुनिया', दोहा मंथन, 'विविध प्रसंग',101 महिला ग़ज़लकार,इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें,कथांजली व बूँद-बूँद में सागर (लघुकथा संग्रह), शेषामृत(गीत संग्रह), 21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियाँ(छत्तीसगढ़)व अन्य साझा संकलन (ii)चश्म-ए-उर्दू,हरिगंधा,अदबी दहलीज़,अर्बाबे क़लम, गीत गागर, छत्तीसगढ़ मित्र, छत्तीसगढ़ आस पास, नारी का सम्बल, काव्यांजलि,आदि पत्रिकाओं सहित अनेक समाचार पत्रों एवं ई-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन सम्मान / पुरस्कार (i) शारदा साहित्य मंच खटीमा(उत्तराखंड) द्वारा प्रदत्त- "दोहा-शिरोमणि" की मानद उपाधि (ii) दोहा दंगल साहित्य मंच(साहिबाबाद) द्वारा प्रदत-"दोहा रत्न" की मानद उपाधि (iii) विश्व वाणी हिन्दी संस्थान जबलपुर द्वारा 'दोहा श्री' अलंकरण (iv) छन्द-मुक्त अभिव्यक्ति मंच द्वारा "गुरुत्व" एवं "शब्द श्री" सम्मान (v) छंदमुक्त अभिव्यक्ति मंच द्वारा प्रदत्त 'सृजन सम्मान', 'शब्द शिल्पी' सहित समय-समय पर अनेक सम्मान। अन्य -दूरदर्शन व आकाशवाणी रायपुर से रचनाओं का समय-समय पर प्रसारण संपर्क का पता- बी-512,सड़क-4,स्मृति नगर,भिलाई नगर,छत्तीसगढ़-490020

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