साकेत एकादश सर्ग/मैथिलीशरण गुप्त
जयति कपिध्वज के कृपालु कवि, वेद-पुराण-विधाता व्यास; जिनके अमरगिराश्रित हैं सब धर्म, नीति, दर्शन, इतिहास! बरसें बीत गईं, पर अब भी है साकेत पुरी में रात, तदपि रात चाहै जितनी हो, उसके पीछे एक प्रभात। ग्रास हुआ आकाश, भूमि क्या, बचा कौन अँधियारे से? फूट उसी के तनु से निकले तारे कच्चे पारे-से! विकच व्योम-विटपी […]