साकेत प्रथम सर्ग/मैथिलीशरण गुप्त
अयि दयामयि देवि, सुखदे, सारदे, इधर भी निज वरद-पाणि पसारदे। दास की यह देह-तंत्री तार दे, रोम-तारों में नई झंकार दे। बैठ मानस-हंस पर कि सनाथ हो, भार-वाही कंठ-केकी साथ हो। चल अयोध्या के लिए सज साज तू, मां, मुझे कृतकृत्य कर दे आज तू। स्वर्ग से भी आज भूतल बढ़ गया, भाग्यभास्कर उदयगिरि पर […]