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ख़ुश्बू चुराते बच्चे/अनिता रश्मि

कोलतार चुपड़ी काली सड़क से
दौड़ते हुए आ मिलते वे बच्चे
सवेरे-सवेरे जो
फूटती किरण के साथ
गए थे सुंदर, साफ, उजर यूनिफाॅर्म में
कई स्कूलों में पंक्तिबद्ध
अपने-अपने बाबा का हाथ थामे
गँवीली पगडंडियों से गुजरकर ।
दुपहरिया होते घर लौटते ही
बाबा के संग,
छोड़ उन्हें ओसारे पर
भागकर आ गए हैं
पगडंडी, मेड़ों को
लांघते-फर्लांघते हुए
माटी के करीब अपनी,
इतने-इतने करीब कि
उनकी देह से माटी की
ख़ुश्बू चुराई जा सकती है।

लेखक

  • अनिता रश्मि मूलतः कथाकार। दो उपन्यास सहित चौदह किताबें। चार सौ से अधिक विविधवर्णी रचनाएँ प्रमुख राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित। अद्यतन : हंस सत्ता विमर्श और दलित विशेषांक के पुस्तक रूप में एक कहानी "मिरग मरीचा" परिकथा द्वारा सत्ताईस कहानियां पुस्तक में कहानी "संकल्प" "सरई के फूल", "हवा का झोंका थी वह" कथा संग्रह, "रास्ते बंद नहीं होते" लघुकथा संग्रह। संपादन: डायमंड बुक्स कथामाला के अंतर्गत झारखंड की 21 नारी मन की कहानियां। अनेक प्रतिष्ठित सम्मान, पुरस्कार। इस वर्ष पांच सम्मान। शोध में रचनाएं शामिल। संपर्क : 1 सी, डी ब्लाॅक, सत्यभामा ग्रैंड, कुसई, डोरंडा, राँची, झारखण्ड -834002

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