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अब चुप न रहो/अनिता रश्मि

सारे भेद खोलने दो कविता
कवियों के कोने अंतरे में घुसकर
किसान की आत्महत्या
बेटी की भ्रूण हत्या
बेटों के आत्मघाती हमले,
पँख पसारे बगूलों सा
दो फैलने सारे राग-विराग समय के
बेटियों ने कैसे आँचल को
बना लिया है परचम
सुपुत्रों की कैसे खड़ी हो गई लंबी फौज
कैसे धरित्री ‘औ’ आकाश सम
माता-पिता पड़ गए अकेले
कैसे हमने ही थमाई अगली पीढ़ी को
तरक्की, कामयाबी, भौतिक उन्नति के
सपने देखने की हसरतें
हमसे दूर रह आगे सड़क संग
चलते रहने की इकलौती सीख
लिखो कविता इस पर भी लिखो
पृथ्वी के दिए गए अवदानों को कैसे
हमने लूट-खसोट की वज़ह बना ली
हमने जी भर लूटा
अब कैसे बदला लिया प्रकृति ने हमसे
लेती हुई करवटें, कँपकँपाती हुई हमें
दोष कितना धरा का, कितना हमारा
इस पर लिखना भी
तुम्हारा कर्तव्य बनता है।
तो लिखो कविता
ग्लोबल वार्मिंग की सही वज़हें
सागर की उदारता
नदी-नग निर्झरिणी की
मुस्काती मीठे ख़्वाबों की मीठी रातें
या फिर उन पर पड़ती यमराज की
कुदृष्टि की अकथ कथा
चुप नहीं रहो अब
और जो भी लिख रहे हैं
इन सब पर अनवरत,
उन पर भी तो लिखो कविता।

लेखक

  • अनिता रश्मि मूलतः कथाकार। दो उपन्यास सहित चौदह किताबें। चार सौ से अधिक विविधवर्णी रचनाएँ प्रमुख राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित। अद्यतन : हंस सत्ता विमर्श और दलित विशेषांक के पुस्तक रूप में एक कहानी "मिरग मरीचा" परिकथा द्वारा सत्ताईस कहानियां पुस्तक में कहानी "संकल्प" "सरई के फूल", "हवा का झोंका थी वह" कथा संग्रह, "रास्ते बंद नहीं होते" लघुकथा संग्रह। संपादन: डायमंड बुक्स कथामाला के अंतर्गत झारखंड की 21 नारी मन की कहानियां। अनेक प्रतिष्ठित सम्मान, पुरस्कार। इस वर्ष पांच सम्मान। शोध में रचनाएं शामिल। संपर्क : 1 सी, डी ब्लाॅक, सत्यभामा ग्रैंड, कुसई, डोरंडा, राँची, झारखण्ड -834002

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