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Month: सितम्बर 2023

चींटी और हाथी/भाऊराव महंत

आओ बच्चों तुम्हें बताऊँ, एक समय की बात। चींटी से हाथी ने बोला- ‘क्या तेरी औकात।।’ ‘मैं तो हाथी बहुत बड़ा हूँ, तू नन्ही-सी जान। मेरी एक फूँक से तेरे, उड़ जाएँगे प्राण।’ इस पर चींटी चिंतित होकर, रहने लगी उदास। और सोचने लगी बहुत है, ताकत उसके पास। कैसे उसको सबक सिखाऊँ, दूँ मैं […]

बंदर मामा/भाऊराव महंत

कभी-कभी तो बंदर मामा, खुद को जतलाने विद्वान। अजब-गजब का ड्रामा करते, और मचाते हैं तूफान। एक रोज ज्ञानी बनने का, हुआ उन्हें था भूत सवार। इसीलिए वे पकड़ हाथ में, बैठ गए पढ़ने अखबार। जहाँ भीड़ थी जानवरों की, बैठे वहीं पालथी मार। और लगाकर काला चश्मा, हुए पढ़ाकू से तैयार। लगे जानवर हँसने […]

परीक्षा/भाऊराव महंत

 बच्चों! जिसकी आशंका से, अक्सर सब डरते हैं। कभी न आए, यही कामना, लोग सभी करते हैं।। कोई शेर नहीं है वह तो, कोई भूत नहीं है। जीवन में कोई भी उससे, किन्तु अछूत नहीं है।। लेकिन बच्चों! जिस पर चलती, नहीं हमारी इच्छा। लोग उसे डर-डरकर कहते, आई अरे! परीक्षा।।

सर्दी की सैर/भाऊराव महंत

बिन स्वेटर के घूम रहा था, चूहों का सरदार। और साथ ही जाड़े में थी, मफ़लर की दरकार। भीषण सर्दी में भी उसके, खुले हुए थे कान। जिसके कारण मुश्किल में थी, चूहे जी की जान। थर-थर थर-थर कांप रहे थे, उसके सारे अंग। उड़ा हुआ था उसके पूरे, चेहरे का भी रंग। छोड़ घूमना […]

कौए भाई/भाऊराव महंत

कौए भाई–कौए भाई, तुम जो काले-काले हो। कर्कश बोली होकर भी तुम, कितने भोले-भाले हो।। कोयल तुम्हें समझती अपना, शत्रु बड़ा सबसे भाई। लेकिन उसने कभी न जाना कितनी तुम में करुणाई।। तुम ही तो कोयल के कुल में, नित्य उजाला करते हो। उसके नन्हे-नन्हे बच्चे, खुद जो पाला करते हो।।

कौशल/मुंशी प्रेमचंद

1 पंडित बालकराम शास्त्री की धर्मपत्नी माया को बहुत दिनों से एक हार की लालसा थी और वह सैकड़ों ही बार पंडितजी से उसके लिए आग्रह कर चुकी थी; किंतु पंडितजी हीला-हवाला करते रहते थे। यह तो साफ-साफ न कहते थे कि मेरे पास रुपये नहीं हैं- इससे उनके पराक्रम में बट्टा लगता था- तर्कनाओं […]

मंत्र/मुंशी प्रेमचंद

1 संध्या का समय था। डाक्टर चड्ढा गोल्फ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे। मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिये आते दिखायी दिये। डोली के पीछे एक बूढ़ा लाठी टेकता चला आता था। डोली औषाधालय के सामने आकर रूक गयी। बूढ़े ने धीरे-धीरे आकर द्वार पर पड़ी हुई […]

बड़े भाई साहब/मुंशी प्रेमचंद

1 मेरे भाई साहब मुझसे पॉँच साल बडे थे, लेकिन तीन दरजे आगे। उन्‍होने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैने शुरू किया; लेकिन तालीम जैसे महत्‍व के मामले में वह जल्‍दीबाजी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भवन कि बुनियाद खूब मजबूत डालना चाहते थे जिस पर आलीशान महल […]

बड़े घर की बेटी/मुंशी प्रेमचंद

1 बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के जमींदार और नम्बरदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े धन-धान्य संपन्न थे। गाँव का पक्का तालाब और मंदिर जिनकी अब मरम्मत भी मुश्किल थी, उन्हीं के कीर्ति-स्तंभ थे। कहते हैं इस दरवाजे पर हाथी झूमता था, अब उसकी जगह एक बूढ़ी भैंस थी, जिसके शरीर में अस्थि-पंजर के सिवा […]

सवा शेर गेहूँ/मुंशी प्रेमचंद

किसी गाँव में शंकर नाम का एक कुरमी किसान रहता था। सीधा-सादा गरीब आदमी था, अपने काम-से-काम, न किसी के लेने में, न किसी के देने में। छक्का-पंजा न जानता था, छल-प्रपंच की उसे छूत भी न लगी थी, ठगे जाने की चिन्ता न थी, ठगविद्या न जानता था, भोजन मिला, खा लिया, न मिला, […]

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