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बेफिक्र/डाॅ. मृत्युंजय कोईरी

शहर के नामी बिजनेसमैन प्रताप कुमार की इकलौती बेटी खुशबू का पहला जन्मदिन है। जन्मदिन पर खुशबू के माता-पिता भव्य पार्टी का आयोजन करते हैं। पार्टी में करीबी मेहमान और दोस्त उपस्थित होते हैं। पार्टी रात के दस बजे तक चलती है। मेहमान खुशबू के लिए उपहार स्वरूप खिलौना, कपड़ा और सोना-चाँदी आदि भेंट करते हैं।

पार्टी के समाप्त होते ही खुशबू की माँ, फूआ, मामी और मौसी हाॅल में बैठकर गिफ्ट को खोल-खोलकर देख रहे हैं। खुशबू भी गिफ्ट के पेपर में खेल रही है। खुशबू की माँ सोना-चाँदी को हाथ में उठाकर कहती है, ‘‘ये सोना कितना अच्छा है। खुशबू पर बहुत अच्छा लगेगा।’’

‘‘वाह! बहुत अच्छा है।’’ फूआ

‘‘आपका वाला तो बहुत ही खूबसूरत है दीदी।’’ माँ

‘‘हाँ, मैंने खुद खुशबू के वास्ते खरीदने गयी थी।’’ फूआ

‘‘सही में दीदी, बहुत ही सुन्दर है।’’ मामी

‘‘भाभी, आपका वाला सोना का चैन खुशबू पर बहुत खिल रहा है।’’ माँ

‘‘हाँ, मेरी पसंद की है।’’ मामी

‘‘वाकई, आपकी पसंद बहुत अच्छी है भाभी।’’ मौसी

‘‘हाँ, हाँ, मेरी पसंद ही है ऐसी।’’ मामी

सभी जेवर और खिलौने की तारीफ करते इस कदर व्यस्त हो गये कि खुशबू कब इनके सामने से दूर चली गयी। इसका पता ही नहीं चला। दो बजे रात को जब सारे गिफ्ट देखने के बात खुशबू की माँ सोने से पहले पानी पीने के वास्ते किचन चली जाती है। तब देखती है कि खुशबू पानी से भरा एक बाल्टी में डूबी हुई है। खुशबू की माँ चिल्ला उठी, ‘‘खुशबू! खुशबू!’’

खुशबू की माँ की आवाज सुनकर सभी किचन पहुँच जाते हैं। खुशबू की फूआ बोली, ‘‘क्या हुआ खुशबू को?’’

‘‘हाँ! हाँ! क्या हुआ खुशबू को? अभी तो हम सब के बीच खेल रही थी।’’ मामी

खुशबू की माँ बाल्टी से उठाकर छाती में लगाकर रो रही है। उनकी मामी गीला कपड़ा उतार रही है। तब तक खुशबू के पापा प्रताप कुमार भी पहुँच जाता है। पीछे-पीछे मामा, फूफा और बाकी मेहमान भी पहुँच जाते हैं। खुशबू की माँ दूध पीलाने की कोशिश करती है। लेकिन खुशबू दूध पीती है न रोती ही है। तभी खुशबू के मामा कहता है, ‘‘जल्दी चलिए! खुशबू की स्थिति काॅफी खराब है। हाॅस्पिटल लेकर जाना होगा।’’

‘‘हाँ! हाँ! आपने ठीक कहा।’’ कहते कार की चाबी पकड़कर खुशबू के पिताजी कार की ओर चले जाते हैं। कार में खुशबू की माँ, दादी, मामी और फूफा बैठकर चले जाते हैं। साथ ही खुशबू के मामा और फूफा भी अपनी-अपनी कार निकाल लेते हैं। बाकी मेहमान और घर के सदस्य भी दोनों कार में बैठकर हाॅस्पिटल के लिए रवाना हो जाते हैं। हाॅस्पिटल पहुँचकर आनन-फानन में इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराते हैं। डाॅक्टर साहब फौरन चेकअप करने लगते हैं। पन्द्रह-बीस मिनट तक चेकअप करने के बाद वार्ड से निकलकर कहते हैं, ‘‘आई एम साॅरी! बच्ची मर चुकी है।’’

‘‘नहीं, नहीं, डाॅक्टर साहब, मेरी बेटी जिंदा है। खुशबू अपनी माँ को अकेली छोड़कर कहीं नहीं जा सकती है। आप अच्छे से चेकअप कीजिए न डाॅक्टर साहब!’’ खुशबू की माँ कहती रो रही है।

‘‘साॅरी मैम, मैंने अच्छे से चेकअप करने के बाद ही कह रहा हूँ।’’ डाॅक्टर

‘‘डाॅक्टर साहब फिर से एक बार अच्छे से चेकअप कर लीजिए न! जितना खर्च होगा। मैं करने के लिए तैयार हूँ।’’ खुशबू के पापा

‘‘साॅरी सर, बच्ची का शरीर बर्फ बन चुका है। लगभग दो-तीन घंटे पहले ही मर चुकी है। मुझे जाने दीजिए! दूसरे वार्ड में भी इमरजेंसी केस है।’’ डाॅक्टर साहब

खुशबू की माँ हाॅस्पिटल में ही रोते-रोते बेहोश हो गयी। अब तो वही कहावत हुई। अब पछताए होत क्या? जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।

 

लेखक

  • डॉ. मृत्युंजय कोईरी शिक्षा; स्नातकोत्तर हिन्दी पीएचडी0 कहानी संग्रह-मेंड़, राजेश की बैल, एक बोझा धान सम्प्रति-सहायक प्राध्यापक हिन्दी विभाग

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