जूली अपने दो माह के शिशु को अपने खेत की मेंड़ पर सुलाकर पति के संग मटर की फलियां तोड़ने लगी । पति मटर की फलियां तोड़ते हुआ कहता है, “मुन्ना की मां! जल्दी-जल्दी मटर की फलियां तोड़ो! दो घंटे में व्यापारी फलियां लेने आएगा।”
जुली मटर की फलियां तोड़ते हुए पति से कहती है, ‘‘मुन्ना को मेंड़ पर सुला कर आयी हूं। मेंड़ से गिर गया तो!’’
‘‘ कुछ नहीं होगा। चिंता मत करो। किसान का पुत्र धरती माता की गोद में बड़ा होता है।”
जूली कुछ देर मटर तोड़ती रही। फिर पति से कहती है, ‘‘मुन्ना को धूप लग रही है क्या? ज़रा देखकर आइए न!’’
“अरे… हल्की-फुल्की धूप भी लगनी चाहिए बच्चों को। ठंड का महीना है, कुछ नहीं होगा। मन लगाकर फलियां तोड़ो।’’
“रो भी नहीं रहा है मुन्ना! धूप लगने से उसका मुँह सूख गया होगा। ज़रा देखकर आइए न!’’
“मैंने कहा न! कुछ नहीं होगा। फिर भी यदि तुम्हें भ्रम है तो जाओ, देखकर आ।’’
“इन्हें तो मुन्ना की चिंता ही नहीं है। केवल काम से मतलब है।’’ जूली बड़बड़ाती मुन्ना के पास चली गई।
न धूप लग रही थी और न ही मुँह सूखा था। वह आराम से सो रहा है। जूली वापस लौटकर चुपचाप मटर तोड़ने लगी।
“तू क्या बड़बड़ाती हुई गयी थी? एक बार फिर से बोलो।’’ पति
“कुछ भी नहीं तो।’’ पत्नी
“‘कुछ भी नहीं!’’ कहता पति चुपचाप मटर की फलियां तोड़ने लगा।
जुली भी निश्चिंतता से कुछ देर जल्दी-जल्दी मटर तोड़ती रही। फिर पति से कहती है, ‘‘देखिए न! चिड़ियाँ चहचहा रही हैं मुन्ना के पास। कोई सांप-उप तो नहीं आया है।’‘
‘‘यहाँ कहाँ चिड़ियाँ चहचहा रही हैं? उधर दूर पेड़ में चूँ.. चूँ कर मुन्ना को लोरी सुना रही हैं।’’
जुली चुपचाप मटर तोड़ने लगती है। बीच-बीच में सिर उठाकर मुन्ना की ओर देखती थी। अचानक चिड़ियाँ की चूँ…चूँ… चूँ.. चूँ………………. आवाज बहुत तेज हो गई। वह गिरती-पड़ती मुन्ना के पास पहुँच गई। उसे गोदी में उठाकर चूमने लेगी। फिर दूध पिलाती हुई कहती है, ‘‘ओ मेरा लाल… मेरा सोना…।’’
‘‘जुली! तुम बार-बार मुन्ना के पास ही जायेगी तो मटर की फलियां कब तोड़ेगी?’’ पति ने मटर की फलियां तोड़ता हुआ कहा।
जुली ने चुपचाप मुन्ना को गामछा से पीठ में बांध लिया। अब वह बेफिक्र होकर तेजी से मटर की फलियां तोड़ने में तल्लीन हो गई।