आज दोहा लोकप्रियता के शिखर पर, इसलिए हर रचनाकार चाहता है कि वह भी दोहे लिखे| किन्तु दोहा जितना छोटा और सीधा दिखता है, लिखना उतना सरल नहीं है| परिणामस्वरूप बहुत कम लोग ही मानक दोहे लिख पाते हैं| क्योंकि-
दीरघ दोहा अर्थ के, आखर थोरे आहि|
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिट कूद चलि जाहि||
अर्थात दोहे में अक्षर भले ही कम होते हैं, लेकिन उसे दीर्घ अर्थ वाला होना चाहिए और दोहाकार को नट की भांति कुशल होना चाहिए| जैसे एक नट अपने सारे शरीर को साध कर कुंडली में से निकाल देता है वैसे ही दोहाकार को भी दोहा रचने में सक्षम होना चाहिए|
दो पंक्तियों और चार चरणों में 13-11, 13-11 के क्रम में कुल 48 मात्राओं से लिखा जाने वाला छंद दोहा कहलाता है। इससे कम या अधिक मात्राओं वाली रचना मानक दोहा की श्रेणी में नहीं आती। मात्राओं के अलावा दोहे का कथ्य, शिल्प, भाव और भाषा भी प्रभावशाली हो।
आधुनिक दोहा को लोकप्रिय बनाने में सर्वाधिक योगदान करने वाले आचार्य देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’ के अनुसार- ”दोहा छंद की दृष्टि से एकदम चुस्त-दुरुस्त और निर्दोष हो। कथ्य सपाट बयानी से मुक्त हो। भाषा चित्रमयी और संगीतात्मक हो। बिंब और प्रतीकों का प्रयोग अधिक से अधिक मात्रा में हो। दोहे का कथ्य समकालीन और आधुनिक बोध से संपन्न हो। उपदेशात्मक नीरसता और नारेबाजी की फूहड़ता से मुक्त हो।”
डॉ. अनंतराम मिश्र ‘अनंत’ ‘दोहे की आत्मकथा’ में लिखते हैं- ”भाषा मेरा शरीर, लय मेरे प्राण और रस मेरी आत्मा है। कवित्व मेरा मुख, कल्पना मेरी आँख, व्याकरण मेरी नाक, भावुकता मेरा हृदय तथा चिंतन
मेरा मस्तिष्क है। प्रथम-तृतीय चरण मेरी भुजाएँ एवं द्वितीय-चतुर्थ चरण मेरे चरण हैं।”
आशय यह कि प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 और दूसरे तथा चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ जोड़ लेने भर से दोहा नहीं बन जाता। इसके लिए और भी बहुत कुछ चाहिए। दोहे के प्रथम और तृतीय चरण का समापन लघु गुरु या तीन लघु से होना अनिवार्य है। इसी प्रकार दोहा के दूसरे और चौथे चरण का अंत गुरु लघु से होना अनिवार्य है।
दोहा एक अर्धसम मात्रिक छंद है, इसलिए सबसे पहले मात्राओं की गणना का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। जब तक मात्राओं की गणना का सही ज्ञान नहीं होगा मानक दोहा नहीं लिखा जा सकता। दोहे के व्याकरण पर यूँ तो विद्वानों ने बहुत कुछ लिखा है| ‘छंद प्रभाकर’ से लेकर पत्र-पत्रिकाओं तक इस छंद की जानकारी मिलती है| किन्तु नए रचनाकारों की सुविधा के लिए यहाँ मात्राओं की गणना से लेकर दोहे की रचना तक की जानकारी सरल भाषा में देने का प्रयास किया जा रहा है|
मात्राओं की गणना निम्रप्रकार की जाती है-
हिन्दी भाषा के सभी व्यंजनों की एक मात्रा (।) मानी जाती है। लघु स्वर अ, इ, उ, ऋ की भी (।) मात्रा ही मानी जाती हैं। जबकी दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ ओ और औ की मात्राएँ दीर्घ (ऽ) मानी जाती हैं। व्यंजनों पर लघु स्वर अ, इ, उ, ऋ आ रहे हों तो भी मात्रा लघु (।) ही रहेगी। किंतु यदि दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ आ रही हों तो मात्रा दीर्घ (ऽ) हो जाती है।
अर्ध-व्यंजन और अनुस्वार/बिंदु (.) की आधी मात्रा मानी जाती है। मगर आधी मात्रा की स्वतंत्र गणना नहीं की जाती। यदि अनुस्वार अ, इ, उ अथवा किसी व्यंजन के ऊपर प्रयोग किया जाता है तो मात्राओं की गिनती करते समय दीर्घ मात्रा मानी जाती है किन्तु दीर्घ स्वरों की मात्रा का प्रयोग होने पर अनुस्वार (.) की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती।
आधे अक्षर की स्वतंत्र गिनती नहीं की जाती बल्कि अर्ध-अक्षर के पूर्ववर्ती अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती है। यदि पूर्ववर्ती व्यंजन पहले से ही दीर्घ न हो अर्थात उस पर पहले से कोई दीर्घ मात्रा न हो। उदाहरण के लिए अंत, पंथ, छंद, कंस में अं, पं, छं, कं सभी की दो मात्राए गिनी जायेंगी, इसी प्रकार वक्त, शब्द, कुत्ता, दिल्ली इत्यादि की मात्राओं की गिनती करते समय व, श, क तथा दि की दो-दो मात्राएँ गिनी जाएँगी। इसी प्रकार शब्द के प्रारंभ में आने वाले अर्ध-अक्षर की मात्रा नहीं गिनी जाती जैसे स्वर्ण, प्यार, त्याग आदि शब्दों में स्, प् और त् की गिनती नहीं की जाएगी। प्रारम्भ में संयुक्त व्यंजन आने पर उसकी एक ही मात्रा गिनी जाती है। जैसे श्रम, भ्रम, प्रभु, मृग। इन शब्दों में श्र, भ्र, प्र तथा मृ की एक ही मात्रा गिनी जाएगी।
अनुनासिक/चन्द्र बिन्दु की कोई गिनती नहीं की जाती। जैसे- हँस, हँसना, आँख, पाँखी, चाँदी आदि शब्दों में अनुनासिक का प्रयोग होने के कारण इनकी कोई मात्रा नहीं मानी जाती।
दोहा यदि लयात्मक है तो उसमें छंद दोष होने की सम्भावना न के बराबर होती है| किन्तु जिन लोगों को संगीत का ज्ञान नहीं है, उनके लिए इसे तय करना मुश्किल होता है| इसलिए दोहे को लयात्मक बनाने के लिए कौन से चरण में क्या होना चाहिए और क्या वर्जित है उसकी चर्चा करते हैं-
दोहे का प्रथम और तृतीय चरण-
दोहा लयबद्ध रहे इसके लिए इसे केवल दो, तीन, चार और छह मात्राओं वाले शब्दों से ही शुरू किया जाता है, पाँच मात्राओं वाले शब्द से दोहा का कोई चरण शुरू नहीं किया जाता। प्रथम और तृतीय चरण शुरू करने के मात्रिक गणों के हिसाब से कुल 34 भेद छंद विशेषज्ञों ने तय किए हैं। इसी प्रकार दूसरे और चौथे चरण के लिए 18 भेद तय किए हैं। जिनका क्रमवार विवरण निम्रांकित है-
दो मात्राओं से दोहा शुरू करने के विद्वानों ने मात्रिक गणों के अनुसार 12 भेद बताए हैं-
2, 2, 2, 2, 2, 3 जैसे- दुख-सुख में जो सम रहे (होता सच्चा संत)
2, 2, 2, 2, 3, 2 जैसे- अब तक भी है गाँव में (कष्टों की भरमार)
2, 2, 2, 4, 3 जैसे- घर तो अब सपना हुआ (महंगी रोटी दाल)
2, 2, 4, 2, 3 जैसे- दिन-दिन बढ़ते जा रहे (झूठ और पाखंड)
2, 4, 2, 3, 2 जैसे- इक मानव की भूख है (इक सागर की प्यास)
2, 4, 2, 5 जैसे- धन-दौलत को मानते (जो अपना भगवान)
2, 2, 4, 5 जैसे- घर की खातिर चाहिए (त्याग समर्पण प्यार)
2, 2, 4, 3, 2 जैसे- धन की अंधी दौड़ में (दौड़ रहे हैं लोग)
2, 5, 4, 2, जैसे- सब गद्दार निकाल दो (ले संकल्प महीप)
2, 6, 3, 2 जैसे- माँ सुलझाती गाँठ सब (पथ करती आसान)
2, 2, 6, 3 जैसे- नख भी कटवाया कभी (आता है क्या याद)
2, 6, 2, 3 जैसे- पढ़ पायेंगे क्या कभी (ऐसा भी अखबार)
दो मात्रा से प्रारम्भ होने वाले प्रथम और तृतीय चरण में शुरू में दो मात्रा के बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता। इसी प्रकार प्रारंभ में दो के बाद चार मात्रा आने पर तीन मात्रा नहीं आती। साथ ही शुरू में तीन बार दो-दो मात्रा वाले शब्द आ रहे हों तो उनके बाद भी तीन मात्रा नहीं आती। प्रारंभ में दो मात्रा के बाद छह मात्रा आने पर उसके बाद चार मात्रा नहीं आती।
तीन मात्राओं से प्रथम और तृतीय चरण शुरू करने के आठ भेद बताए गए हैं-
3, 3, 2, 3, 2 जैसे- सजे हुए हैं ताज में (बिन खुशबू के फूल)
3, 3, 2, 2, 3 जैसे- प्यार दिनों दिन बढ़ रहा (यूं यारों के बीच)
3, 3, 2, 5 जैसे- निकल पड़ा जो ढूँढने (पाई उसने राह)
3, 5, 5, जैसे- बम्ब, धमाके, गोलियां (खून सने अखबार)
3, 5, 2, 3 जैसे- कोख किराये पर चढ़ी (ममता हुयी नीलाम)
3, 3, 4, 3 जैसे- नया दौर रचने लगा (नए-नए प्रतिमान)
3, 5, 3, 2 जैसे- एक अकेली जान अब (चारों पर है भार)
3, 3, 5, 2 सास-ससुर लाचार हैं (बहू न पूछे हाल)
शुरू में तीन मात्रा वाले शब्द के बाद दो, चार और छह मात्रा वाले शब्द नहीं आते। इसी प्रकार शुरू में तीन के बाद पाँच मात्रा हों तो उसके बाद चार मात्रा वाला शब्द नहीं आएगा।
चार मात्राओं से दोहे का प्रथम और तृतीय चरण शुरू करने के 10 भेद विद्वानों द्वारा बताए गए हैं-
4, 4, 3, 2 जैसे- मंदिर मस्जिद चर्च में (हुआ नहीं टकराव)
4, 4, 2, 3 जैसे- देवी कहता है जिसे (रहा गर्भ में मार)
4, 4, 5 जैसे- गाड़ी, बँगले, चेलियाँ (अरबों की जागीर)
4, 2, 4, 3 जैसे- चंदन वन गायब हुआ (उगने लगे बबूल)
4, 2, 2, 2, 3 जैसे- गाँवों में भी आ गया (शहरों वाला रोग)
4, 2, 2, 3, 2 जैसे- मरना है हर हाल में (सुन ले अरे किसान)
4, 2, 2, 5 जैसे- लिखने का क्या फायदा (कलम अगर लाचार)
4, 3, 3, 3 जैसे- अच्छा हुआ न मिल सके (गंजों को नाखून)
4, 2, 5, 2 जैसे- दोनों दल खुशहाल हैं (करता देश विलाप)
4, 3, 4, 2 जैसे- देने लगा समाज भी (पैसे को अधिमान)
चार मात्रा से शुरू होने वाले प्रथम और तृतीय चरण में प्रारंभिक चार के बाद पाँच मात्रा वाला शब्द नहीं आता। इसी प्रकार यदि चार मात्रा वाले शब्द के बाद दो मात्रा वाला शब्द आ रहा हो तो उसके बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता।
छह मात्राओं वाले शब्द से दोहे के प्रथम और तृतीय चरण की शुरूआत करने के चार भेद होते हैं-
6, 2, 2, 3 जैसे- चौराहों पर लुट रही (अबलाओं की लाज)
6, 2, 3, 2 जैसे- सुविधाओं की चाह में (बिकता है ईमान)
6, 4, 3 जैसे- रामकथा करने लगे (बगुले बनकर सिद्ध)
6, 5, 2 जैसे- चौपालें खामोश हैं (पनघट है वीरान)
छह मात्रा वाले शब्द के बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता।
दोहे का द्वितीय और चतुर्थ चरण-
प्रथम और तृतीय चरण की तरह ही दोहे का दूसरा और चौथा चरण भी केवल दो, तीन, चार और छह मात्राओं से ही शुरू होता है।
दो मात्रा से शुरू होने वाले दूसरे और चौथे चरण के विद्वानों ने आठ भेद बताए हैं-
2, 2, 2, 2, 3 जैसे- (झूठ मलाई खा रहा) छल के सिर पर ताज|
2, 2, 2, 5 जैसे- (दिन-दिन बढ़ते जा रहे) घर में ही गद्दार|
2, 2, 4, 3 जैसे- (बरगद रोया फूटकर) घुट-घुट रोया नीम|
2, 2, 3, 4 जैसे- (मातृसदन घर पर लिखा) माँ को दिया निकाल|
2, 4, 2, 3 जैसे- (दानव से बदतर हुई) अब मानव की सोच|
2, 4, 5 जैसे- (झूठे मिलकर सत्य को) कर देते लाचार|
2, 5, 4 जैसे- (सब गद्दार निकाल दो) ले संकल्प महीप|
2, 6, 3 जैसे- (मनसब की यदि आरजू) गा दरबारी राग|
दोहा के दूसरे और चौथे चरण की शुरूआत दो मात्रा वाले शब्द से हो रही हो तो उसके बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता।
तीन मात्रा वाले शब्द से दूसरे और चौथे चरण की शुरूआत के निम्र भेद तय किए गए हैं-
3, 3, 5 जैसे- (फैला भ्रष्टाचार का) सभी ओर आतंक|
3, 5, 3 जैसे- (ऊन काटकर भेड़ को) दिया दुशाला दान|
3, 3, 2, 3 जैसे- (जिसके पीछे भीड़ है) वही सफल है आज|
इसका चौथा भेद भी होता है जिसमें 3, 2, 3, 3 मात्राएँ होती हैं, किंतु बीच की मात्राएँ 2 और 3 वास्तव में पाँच मात्राओं वाले शब्द के रूप में ही प्रयोग की जाती हैं। जैसे अध जले, अन मने।
तीन मात्रा से शुरू हो रहे दूसरे और चौथे चरण में प्रारंभिक तीन मात्रा वाले शब्द के बाद दो मात्रा वाला शब्द नहीं आता।
चार मात्राओं वाले शब्द से दूसरे और चौथे चरण की शुरूआत के चार भेद बताए गए हैं-
4, 4, 3 जैसे- (राशन मुखिया खा गया) मिटती कैसे भूख|
4, 3, 4 जैसे- (भाव जमीनों के बढे) सस्ते हुए ज़मीर|
4, 2, 2, 3 जैसे- (छोड़ गया वो पूत भी) रोने को दिन-रैन|
4, 2, 5 जैसे- (बाँट दिया किसने यहाँ) नफ़रत का सामान|
चार मात्रा से शुरू होने वाले दूसरे और चौथे चरण में छह मात्रा वाले शब्दों का प्रयोग नहीं होता। इसी प्रकार चार मात्रा वाले शब्द के ठीक बाद पाँच मात्रा वाला शब्द नहीं आता।
छह मात्राओं से दूसरे और चौथे चरण की शुरूआत के केवल दो ही भेद विद्वानों ने बताए हैं-
6, 2, 3 जैसे- (सन्नाटा है गाँव में) खौफज़दा हैं लोग|
6, 5 जैसे- (सांप नेवलों ने किया) समझौता चुपचाप|
छह मात्राओं से शुरू होने वाले दूसरे और चौथे चरण में चार मात्राओं वाले शब्द का प्रयोग नहीं हो सकता। इसी प्रकार छह मात्रा वाले शब्द के ठीक बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता।
इसके साथ-साथ कुछ और भी नियम विद्वानों ने तय किए हैं जैसे-
- दोहे का प्रथम और तृतीय चरण जगण अर्थात ।ऽ। मात्रा वाले शब्द से शुरू नहीं किया जा सकता। जैसे जमीन, किसान आदि शब्द।
- दूसरे चरण के अंत में चार मात्रा वाला शब्द हमेशा जगण अर्थात ।ऽ। मात्रा के रूप में ही आता है।
उपरोक्त नियमों को ध्यान में रखते हुए यदि दोहे की रचना की जाए तो उसके लयात्मक और धारदार होने की संभावना बढ़ जाती है।
–रघुविन्द्र यादव
प्रकृति भवन,
नीरपुर, नारनौल