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यादें/कीर्ति श्रीवास्तव

कितनी अजीब
होती हैं ये यादें
जो कभी दर्द
तो कभी खुशी दे जाती हैं
पर तेरी यादें
मुझे तुझसे मिलवाती हैं

तेरे बालों की वो खुशबू
और उनसे
टपकती पानी की बूँदें
मुझे आज भी
सराबोर कर जाती हैं
तेरे पैरों के नाजुक
तलवों को
अपने हाथों में थामना
और
तेरा मना करना
मुझे आज भी
उस छुअन का
एहसास कराता है

तेरा मेरे कांधे पर
सर रखकर
मुझे अपनी बाहों में कसना
कुछ मेरी सुनना
कुछ अपनी कहना
मेरे कानों में
तेरी बातों का रस
आज भी घोल जाती हैं

यादें
मुझे हर रोज
हर पल
हर क्षण
तुझसे मिलवाती हैं
तुझे मेरे ओर
करीब ले आती हैं
कितनी अजीब होती हैं ये
यादें…

कीर्ति श्रीवास्तव

लेखक

  • कीर्ति श्रीवास्तव, जन्म स्थान-भोपाल, भारत के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, साहित्य समीर 'दस्तक' मासिक पत्रिका का संपादन व विभोर प्रकाशन का संचालन

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