जीवन तो एक बंजारा है ।
जो फिरता मारा मारा है ॥
इसका तो ध्येय मौत केवल ,
विधना ने किया इशारा है ।
यह दो पल सिर्फ हमारा है ।
जीवन तो एक बंजारा है ॥
यह गीत खुशी और गम के लेकर ,
मानव काया की बस्ती में ।
कुछ मधुर और कुछ नीरस ,
बोलों को गाता घूम रहा ।
यह अनसुलझे प्रश्नों का ,
केवल एक पिटारा है ।
जीवन तो एक बंजारा है ।।
यह अद्भुत ना समझा राज ।
अलबेला कष्टों का साज ।।
इंसान तो एक नौका है ।
बनता यही किनारा है ॥
कुछ सालों तक चमके जो ,
वो टूटा हुआ सितारा है ।
जीवन तो एक बंजारा है ।
जो फिरता मारा मारा है । ।
शुभ्रा बाजपेयी
लेखक
-
शुभ्रा बाजपेयी जन्म - 01-03 – 1996 जनपद - हरदोई , उ० प्र ० शिक्षा - एम॰ ए॰ , बी ० एड , सम्प्रति - अंग्रेजी अध्यापक लेखन विधा - गीत रचना ( हिन्दी एवं अंग्रेजी में ) दोहा , तथा सामयिक लेख रचना । प्रकाशन - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गीत प्रकाशित ।
View all posts