उसने इक बार जो बोला कभी मुमताज़ मुझे
उड़ गया ले के मेरा जज़्ब ए परवाज़ मुझे
तू अकेला है कहां हर जगह हाज़िर मैं हूँ
दे के तो देख कभी धीरे से आवाज़ मुझे
अपने बचपन की सहेली से भी गर बात करूँ
देखे मशकूक नज़र से मेरा हमराज़ मुझे
एक मुद्दत से अधूरी जो पड़ी है मेरी
उस कहानी ने कहा दे कोई आगाज़ मुझे
झूठ भी सच सा लगे सच भी लगे झूठा सा
ऐसा आता ही नहीं कोई भी अंदाज़ मुझे
जो सुने हमको वही दिल से लगा ले अपने
ख़ुद को आवाज़ बना और बना साज़ मुझे
दामिनी चिड़िया सी और ख़्याब में देखा मंज़र
नौच कर खा गया कल रात कोई बाज़ मुझे
2.
मुमकिन है तुझको भुला देगा दिल
बस तड़पने की मुझको सज़ा देगा दिल
जब भी पहुंचूंगी मैं कन्जे तन्हाई में
जाम यादों का तेरी पिला देगा दिल
सुर्खरू दोनों आलम में हो जाएगा
तू जो बिछेड़े हुए गर मिला देगा दिल
जितने ग़म देने हैं दे शौक़ से
हौसला फिर से मुझको नया देगा दिल
एक नाकाम आशिक़ कहेगा ना कुछ
सिर्फ टूटा हुआ इक बना देगा दिल
दिल जलाकर जिसे इल्म की दी ज़िया
क्या पता था वही बस बुझा देगा दिल
झूठ भी सच सा लगे सच भी लगे झूठा सा
ऐसा आता ही नहीं कोई भी अंदाज़ मुझे
मन को भा गया