दीप जला दो हर चौखट पर, राम पधारे हैं।
कितने ही वर्षों से सञ्चित, इन आँखों में जल है।
पाँव पखारुँ उससे पहले, भीग गया आँचल है।
खुशियाँ इतनी, जैसे कोई रत्नाकर पा जाये
बड़े दिनों के बाद यहाँ, सुखधाम पधारे हैं...।
दीप जला....राहुल द्विवेदी 'स्मित' ये उदासी प्राण लेकर जा रही
हो सके तो तुम चली आओ प्रिये!
भावनाएँ राधिका सी, हो गयीं हैं बावरी!
कृष्ण गोरे हो गये हैं, गोपियाँ सब साँवरी!
धीरज श्रीवास्तव
शुक्ल पक्ष का चाँद है , भले व्यक्ति का नेह ।
कृष्ण पक्ष के चाँद सम , दुर्जन करें सनेह ।।
दुर्जन करें सनेह , स्वार्थ से उसका नाता ।
पल पल घटता प्रेम ,स्वार्थ यदि ना सध पाता ।
कहे 'साधना' सत्य ,प्रेम है राम , कृष्ण का ।
बढ़ता रहता नित्य , चाँद ज्यों शुक्ल पक्ष का ।। - साधना ठकुरेला