हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए/दुष्यंत कुमार
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मत कहो, आकाश में कुहरा घना है/दुष्यंत कुमार
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तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया/दुष्यंत कुमार
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नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं/दुष्यंत कुमार
नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए ... Read more.
घंटियों की आवाज़ कानों तक पहुंचती है/दुष्यंत कुमार
घंटियों की आवाज़ कानों तक प&... Read more.
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए/दुष्यंत कुमार
कहीं पे धूप की चादर बिछा के ब... Read more.
फिर धीरे-धीरे यहां का मौसम बदलने लगा है/दुष्यंत कुमार
फिर धीरे-धीरे यहां का मौसम ब... Read more.
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ/दुष्यंत कुमार
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं त... Read more.
अपाहिज व्यथा को वहन कर रहा हूँ/दुष्यंत कुमार
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परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं/दुष्यंत कुमार
परिन्दे अब भी पर तोले हुए है... Read more.