सँभलकर राह में चलना वही पत्थर सिखाता है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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अपनी औक़ात से बढ़ने की सज़ा पाती है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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जो पेड़ सबको कड़ी धूप से बचाता है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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तरफ़दारी नहीं करते कभी हम उन मकानों की/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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जो ख़ुद उदास हो, वो क्या ख़ुशी लुटाएगा/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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बता रहे हैं ये सरसों के फूल बल खाकर/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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शाम का वक़्त है शाख़ों को हिलाता क्यों है/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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क्या हुआ तुमको अगर चेह्रे बदलना आ गया/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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हमने यूँ भी वक़्त गुज़ारा मस्ती में, याराने में/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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कलियाँ, फूल, सितारे, शबनम, जाने क्या-क्या चूम लिया/गज़ल/डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
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