कबीर का जन्म सन 1398 में ज्येष्ठ पूर्णिमा दिन सोमवार को वाराणसी के पास ‘लहरतारा’ नामक स्थान पर हुआ था।
प्रमुख रचनाएं- ‘बीजक’ जिसमें साखी, सबद एवं रमैनी संकलित हैं
कबीर की मृत्यु सन 1518 में बस्ती के निकट मगहर में हुई।
कबीर भक्ति काल की निर्गुण धारा के प्रतिनिधि कवि हैं वे अपनी बात को साफ-साफ एवं दो टूक शब्दों में प्रभावी ढंग से कह देने के हिमायती थे, बन पड़े तो सीधे-सीधे नहीं तो दरेरा देकर इसीलिए कबीर को हजारी प्रसाद द्विवेदी ने वाणी का डिक्टेटर कहा है।
कबीर की भाषा सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी है। इनकी भाषा में हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द सम्मिलित हैं। राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता है। ऐसा माना जाता है की रमैनी और सबद में ब्रजभाषा की अधिकता है तो साखी में राजस्थानी व पंजाबी मिली खड़ी बोली की।
कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, इसलिए उनके दोहों को उनके शिष्यों द्वारा ही लिखा या संग्रीहित किया गया था। उनके दो शिष्यों, भागोदास और धर्मदास ने उनकी साहित्यिक विरासत को संजोया। कबीर के छंदों को सिख धर्म के ग्रंथ “श्री गुरुग्रन्थ साहिब” में भी शामिल किया गया है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संत कबीर के 226 दोहे शामिल हैं और श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल सभी भक्तों और संतों में संत कबीर के ही सबसे अधिक दोहे दर्ज किए गए हैं। क्षितिमोहन सेन ने कबीर के दोहों को काशी सहित देश के अन्य भागों के सन्तों से एकत्र किया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इनका अंग्रेजी अनुवाद करके कबीर की वाणी को विश्वपटल पर लाये। हिन्दी में बाबू श्यामसुन्दर दास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी सहित अनेक विद्वानों ने कबीर और उनकी साहित्यिक साधना पर ग्रन्थ लिखे हैं।