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चिन्ता और कारण:नगेन्द्र फौजदार

चिन्ता और कारण:नगेन्द्र फौजदार

कार्तिक माह के अन्तिम सप्ताह में जब सूर्यदेव अपना प्रभाव प्रथम पहर के बाद छोड़ते हैं , ऐसी एक भीगी सुबह में श्रीमती रमा द्विवेदी की भेंट अकस्मात् गुलाबी शहर के एक बालोद्यान के सिंहद्वार के सामने बिछी बेंच पर बैठी अवसादग्रस्त श्रीमती कल्पना राय से हुई । घनिष्ठ मित्रता में किसी औपचारिकता का कोई स्थान नहीं होता, यही सोचकर बहुत समय के बाद मिली श्रीमती रमा ने अपनी सहेली की चिन्तित मुख-मुद्रा को भाँपकर सीधा प्रश्ऩ किया- “क्या बात है कल्पना ! है तो किसी बड़ी चिन्ता मे? “

“क्या बताऊँ रमा ! बच्चों की चिन्ता ही मेरी परेशानी का कारण है ।”

“अरे ! तुमने लड़की को ससुराल भेज दिया, राकेश और अमित भी ‘सैटल्ड़’ हो गए; फिर भी…!”

श्रीमती कल्पना से कोई प्रत्युत्तर प्राप्त ना हो सका ।

कुछ क्षण के लिए मौन ने हठात् अपना स्थान बना लिया था । पास रखी पानी की बोतल को आधा गटकने के बाद श्रीमती राय ने बिखरे-से अतिमन्द स्वर में बोलने का प्रयास किया- “यही तो चिन्ता है कि मेरी सोनिया वहाँ कोई दुख ना पाए और…बहुएँ , मेरे बेटों को ‘सैपरेट’ घर में रहने के लिए विवश ना कर देँ…! “

कहते-कहते कल्पना की मुख-ध्वनि गले में सिमट कर रह गई और मौन ने फिर एक बार अपना कोलाहल शुरू कर दिया । अब पसीने के महीन कण श्रीमती रमा द्विवेदी के चेहरे पर नृत्य करने लगे थे, अन्तर था केवल कारण का । रमा की चिन्ता का विषय, उसकी बीस वर्षीय बेटी के लिए योग्य वर की तलाश का था और बेटों के लिए स्थायी रोज़गार का ।

 

नगेन्द्र फौजदार

चिन्ता और कारण:नगेन्द्र फौजदार
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