साहित्य रत्न महज एक पत्रिका नहीं, ये देश-विदेश के रचनाकारों का एक मंच हैं, जहाँ से हम एक-दूसरे के साथ बहुत करीब से जुड़ सकते हैं । एक – दूसरे की रचनाओं को सांझा कर सकते हैं, एक दूसरे की समस्याओं को महसूस कर सकते हैं । ये भी कि जो समस्या आसाम की है, वही गुजरात की भी है क्या ? जो संवेदना कश्मीर में महसूस की जाती, वही कन्याकुमारी में भी क्या ? पिछले वर्षों में, मैं आकाशवाणी, कारगिल में रहा, वहां मैंने लकड़ियों पर बहुत ही बेहतरीन कहानी पढ़़ी । वहाँ 6 महीने बर्फ रहती है । तापमान -40 तक चला जाता है । लकड़ियां ही उनको और उनके मवेशियों को ठंड से बचाती हैं । सूर्य की असल पूजा भी वहीं होती है । वहाँ जून-जुलाई में घाटियों पर चढ़ी गायों को मैंनें दूसरी गायों के मालिक द्वारा नमक खिलाते समय रोते हुए देखा है कि हमारा मालिक हमें नमक खिलाने नहीं आया । निश्चित रूप से अन्य प्रदेश के रहवासियों को यह सुनकर आश्चर्य होगा कि नमक के लिए गाय भला क्यों रोयेगी पर बर्फ में रहने वाली गायों के लिए नमक, सांधी से भी अधिक स्वादिष्ट लगता है । वह उनके शरीर को स्वस्थ रखने की बहुत बड़ी औषधि भी है । सृजक की समस्या का केन्द्र वहां का परिवेश होता है । हर बड़ी पत्रिका ऐसे ही कंटीले और पथरीली राहों से निकलकर मुकाम तक पहुंचती है, हम उन राहों तक जाने को मुस्तैद हैं ।
इतने विशाल भारत की इतनी विशाल संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, बोलचाल और पर्व-त्यौहारों की झांकी भी साहित्य रत्न जैसी पत्रिका में देखी जा सकती है । भारत के भूगोल का हर दर्रा, हर घाटी, हर टापू और हर दीप को खंगालने की कोशिश भी हमारी है । हर चरित्र , परिवेश और प्रक्रियाओं को भी हम निकट ही नजदीक से जान पाएंगे । इंटरनैटिय जमाने में जबकि हमें सारी जानकारी त्वरित और अपडेट चाहिए होती है , आने वाले दिनों में यह सब भी साहित्य रत्न उपलब्ध करवाने में सक्षम होगा ।
दरअसल आज के रचनाकारों की मूल समस्या है ललित लेखन । खासकर हिन्दी भाषियों में रेखाचित्र, संस्मरण, डायरी लेखन, पत्र लेखन, समीक्षा, निबंध, आदि का घोर संकट है । साहित्यकार होने की पहली और आखिरी शर्त ही ये होती है कि वह साहित्य की तमाम विधाओं में लिखे फिर प्रमुखता जो भी रहे या सफलता जिस भी क्षेत्र में हासिल हो। रचनाकार साहित्य की अन्य विधाओं को अक्सर पत्रकारिता मानकर छोड़ देता है । वह यह भूल जाता है कि पत्रकारिता भी 75% साहित्य है । जितने बड़े साहित्यकार रहे हैं, वे श्रेष्ठ पत्रकार और सम्पादक साबित हुए हैं ।भारतेंदु से लेकर प्रेमचंद, अज्ञेय, दुष्यंत और कमलेश्वर तक श्रेष्ठ साहित्यकार होने के साथ-साथ श्रेष्ठ पत्रकार भी थे । दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह भी कि साहित्यकार होने के लिए पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं पर पत्रकार होने के लिए पढ़ा, लिखा होना आज की पहली शर्त है । अगर कोई पत्रकार , साहित्यकार न भी हो तो भी वह साहित्य के बहुत नजदीक रहता है । यह अंक बिना शेष विधाओं के आपके बीच इस उम्मीद में है कि जल्द ही आप सबके सहयोग से ये इन शेष विधाओं से सजा होगा । हम चाहेंगे कि हर अंक में एक आत्मकथा का अंश भी धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया जाता रहे । साहित्य में विशेष उपलब्धियों पर साक्षात्कार भी आपको पढ़ने को मिले। हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों से खास अनुरोध है कि वो अपना शोध आलेख हमें अवश्य भेजते रहें । यह पत्रिका युवा मन के बहुत ही करीब से गुजरेगी, उम्मीद है युवा मन इस पथ का राही होगा ।
साहित्य रत्न पत्रिका के प्रवेशांक पर पाठकों की घनी प्रतिक्रिया भी मिली है, सामाजिक माध्यमों पर भी अच्छे कमैंट्स मिले हैं । कुछेक अंश इसमेँ शामिल भी किए हैं । आगे भी उम्मीद है कि आप तमाम कमियों से अवगत करवाएंगे ताकि आने वाले अंकों में निखार आ सके । पूर्वोत्तर की घाटियों से देश को निहारना निश्चित रूप से कठिन है पर यदि आप सब अपनी – अपनी छत पर खड़े मिलेंगे तो निश्चित तौर पर हम कामयाब होंगे ।
:रामअवतार बैरवा