गुरु गोबिंद ने वैशाखी वाले दिन को चुना।
लेने को इम्तिहान ताना-बाना था बुना।।
यह दिन खुशी का सबके लिए भारी था।
किसान भी फसल काटने की तैयारी को था।।
सिकखी में धर्म, जाँत का भेदभाव न था।
किसी के लिए नफरत, अलगाव भी न था।।
हिंदू धर्म के लिए भी यह दिन विशेष है।
गुरु का आज सच का करना उन्मेश है।
बुलाई गुरु ने एक सभा बडी भारी।
पाँच शीश लेने की की है मैने तैयारी।
आज खालस धर्म का इम्तिहान है।
तुम्हारी इंसान होने की पहचान है।
शीश देकर अपना खालसे में प्रवेश करों।
आकालपुरख के सामने जीवन का निवेश करों।
तुम्हारे जन्म का लक्ष्य तुम्हारे है सामने ।
खडा खुद परमात्मा तुम्हारा हाथ है थामने।
सबके होश उड गए मौत के डर से।
दया राम उठे जान हथेली में रखके।
एक-एक करके उठ खडे हुए पाँच वीर।
सहज ,सिदक, गंभीर और थे अधीर।
गुरु ने आज नानक के खालसे को आगे बढाया।
उसी सिद्धांत, विचार, फलस़फे को दोहराया।
सबको पिलाकर चरण पाहुल सिंह सजाया।
उनके नाम के आगे कौर-सिंह था सजाया।
नानक ने खालस धर्म था जो चलाया।
दसवे जामें में फिर उसे ढृढ़ करवाया।।
हम सब एक अकालपुरख की संतान है।
सच धर्म के लिए मर मिटना ही शान है।
गोबिंद ने तो इसके लिए वारा परिवार सारा।
हम सबको अपना पुत्र कहकर स्वीकारा।।
हिंदुस्तान आज है ,हमेशा अमर रहेगा।
सरहंद, चमकौर का इतिहास यह गवाही भरेगा।।
जगदीश कौर