साहित्य रत्न
साहित्य की विभिन्न विधाओं का संसार
फिरे हम लोग दुनिया को ही अपना दर्द दिखलाते
हम अपने आप से बाहर निकल कर क्यूँ नहीं आते
जिसे इक रोज़ सबके सामने आना ये निश्चय है
न जाने किस लिए सच बोलने से लोग घबराते
हमारी और उनकी प्यास में है फ़र्क़ बस इतना
हमें पानी नहीं मिलता लहू वो रोज़ पी जाते
समय के साथ चलना है तो आँखें खोल कर रखिए
हमारे बीच हैं कातिल नज़र हमको नहीं आते
कई सदियों का हमको है तजुर्बा जाग भी जाओ
कभी गुज़रे हुए लम्हे नहीं फिर लौट कर आते
सभी के हाथ को थामे जब अपनी राह चल देंगे
जमीं से चाँद तारों तक हम तिरंगा अपना फहराते
किशन तिवारी