साहित्य रत्न
साहित्य की विभिन्न विधाओं का संसार
कुछ समझ आता नहीं है जिंदगी तेरा लिखा।
एक पल में सुख लिखा था दूसरे में क्या लिखा।
साँस आती और जाती जानते हैं हम मगर,
बस अचानक छूट जाता साँस का आना लिखा।
सूखते से इक शज़र ने ये कहा है आह भर,
तय हुआ था इन बहारों का तो बस जाना लिखा।
रोज उसको सोचता हूँ बस यही मैं सोचकर,
काश पूरा हो कभी तो सोच का मेरा लिखा।
दिन गुजर जाता है मेरा रोज ही बस इस तरह,
सुन लिया उसका रिकॉर्डिंग,पढ़ लिया उसका लिखा।
दूर तक फैली हुई थी राह में वीरानियाँ,
आगे जाना है मना पत्थर पे बस ये था लिखा।
रातभर किस सोच में डूबा है सागर आज भी,
आँख में उसकी किसी ने जैसे जगराता लिखा।
डॉ.रामावतार सागर