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इक कली की तरहः मनमोहन सिंह तन्हा

देखने में तो है आदमी की तरह

 पर महकता है वो इक कली की तरह

 ये अंधेरे उसे अब डराते नहीं

 जगमगाता है वो रोशनी की तरह

 आईने की तरह उसका है साफ दिल

 उसका हर लफ्ज़ है बंदगी की तरह

 मुझसे जब वह मिला मेरा ही हो गया

 लगता ही वो नहीं अजनबी की तरह

प्यार उससे मुझे कुछ हुआ इस कदर

जैसे सांसों में हो ज़िंदगी की तरह

 मुस्कुराए तो जैसे खिलें फूल सब

 धड़कनों में बसा आशिकी की तरह

‘तन्हा’ चेहरा है उसका भरा नूर से

 सच बताऊं तो है आप ही की तरह।

मोहन सिंह तन्हा

इक कली की तरहः मनमोहन सिंह तन्हा
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