मुक्तक/आशीष कुमार पाण्डेय
अपनी सोच को ही कलम से कागज़ पर उतार देता हूं, महफिल में मिले वाह वाहियां हमें इसलिए हंसा देता हूं, दिन रात जो करता हूं मैं हद से ज्यादा उद्यम सफर में, खुश रहे परिवार इस लिए बेहिसाब पसीना बहा देता हूं, तुम साथ दो यदि मेरा, मैं राह समुंदर में बना दूं, तुम […]