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कहानी

सोन के पहाड़ियों का सन्नाटा/प्रवीण वशिष्ठ

जब मैं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी का गला पकड़कर उसे दीवाल से सटाया तब मुझे पारितोषिक सजा के रूप में सोन के पहाड़ियों का बनवास दिया गया। मेरा तबादला ब्लॉक म्योरपुर जिला सोनभद्र के डुमरांव गांव में किया गया। यह समाचार जब मेरे घर में पता चली तब बाबूजी खुश हुए और मुझे नौकरी छोड़ने […]

घरानों की परम्परा/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

हस्तिनापुर साम्राज्य में आज बहुत सरगर्मी है। महल के बाहर कई महिलाएं मदिरापान और द्युत के विरोध में नारे बाजी कर रही थीं | विरोध के स्वर रनिवास तक पहुंचे | “सेविका ! पता करो बाहर किस बात को लेकर शोर मचा है ?” विश्रामकक्ष में विश्राम कर रही द्रोपदी ने पंखा झल रही सेविका […]

धरती की बेटी/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

“क्या री ! सारा दिन यहाँ -वहाँ कूद मचाती रहती है पोरी।“ सकू ने बेटी शेवंती को डाँटते हुए कहा | “अरे ! आई सोनी और मंजुला के संग खेत में गई थी।“ शेवंती बोली | “बस हुआ तेरा रोज – रोज खेत में कूदना फांदना। शेवन्ती, अब तू बड़ी हो गई है, घर पर […]

बुलबुल/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

यात्रियों से ठसाठस भरी बस में मेरी निगाह अपने लिए थोड़ी सी जगह  तलाश रही थी। शायद कहीं टिकने भर की जगह मिल जाय। ताकि बार बार लगे वाले ब्रेक और उससे होने वाली उलझनों से बच सकूँ। हम महिलाओं की समान अधिकारों की लड़ाई ने पुरुषों के मन में हमारे प्रति प्रतिद्वंद्विता का भाव […]

उसने कहा था/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

बड़े-बडे़ शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बू कार्ट वालों की बोली का मरहम लगावे। जबकि बड़े शहरों की चौड़ी सड़को पर घोड़े की पीठ को चाबुक से धुनते हुए इक्के वाले कभी घोड़े की […]

बुद्धु का काँटा/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

1 रघुनाथ प् प् प्रसाद त् त् त्रिवेदी – या रुग्‍नात् पर्शाद तिर्वेदी – यह क्‍या? क्‍या करें, दुविधा में जान हैं। एक ओर तो हिंदी का यह गौरवपूर्ण दावा है कि इसमें जैसा बोला जाता है वैसा लिखा जाता है और जैसा लिखा जाता है वैसा ही बोला जाता है। दूसरी ओर हिंदी के […]

घंटाघर/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

एक मनुष्य को कहीं जाना था। उसने अपने पैरों से उपजाऊ भूमि को बंध्या करके पगडंडी काटी और वह वहाँ पर पहला पहुँचने वाला हुआ। दूसरे, तीसरे और चौथे ने वास्तव में उस पगडंडी को चौड़ी किया और कुछ वर्षों तक यों ही लगातार जाते रहने से वह पगडंडी चौड़ा राजमार्ग बन गई, उस पर […]

हीरे का हार/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

1 आज सवेरे ही से गुलाबदेई काम में लगी हुई है। उसने अपने मिट्टी के घर के आँगन को गोबर से लीपा है, उस पर पीसे हुए चावल से मंडन माँडे हैं। घर की देहली पर उसी चावल के आटे से लीकें खैंची हैं और उन पर अक्षत और बिल्‍वपत्र रक्‍खे हैं। दूब की नौ […]

धर्मपरायण रीक्ष/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

1 सायंकाल हुआ ही चाहता है। जिस प्रकार पक्षी अपना आराम का समय आया देख अपने-अपने खेतों का सहारा ले रहे हैं उसी प्रकार हिंस्र श्‍वापद भी अपनी अव्याहत गति समझ कर कंदराओं से निकलने लगे हैं। भगवान सूर्य प्रकृति को अपना मुख फिर एक बार दिखा कर निद्रा के लिए करवट लेने वाले ही […]

सुखमय जीवन/चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

1 परीक्षा देने के पीछे और उसके फल निकलने के पहले दिन किस बुरी तरह बीतते हैं, यह उन्हीं को मालूम है जिन्हें उन्हें गिनने का अनुभव हुआ है। सुबह उठते ही परीक्षा से आज तक कितने दिन गए, यह गिनते हैं और फिर ‘कहावती आठ हफ्ते’ में कितने दिन घटते हैं, यह गिनते हैं। […]

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