उम्मीद बँधी है एक तुम्हीं से सिर्फ़ तुम्हारे हैं/ग़ज़ल/सुभाष पाठक’ज़िया’
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घोंसले से झाँककर कहती है चिड़िया, पेड़ मत काटो/ग़ज़ल/सुभाष पाठक’ज़िया’
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फूल पत्ते खिल उठेंगे तुम जड़ों पर ध्यान देना/ग़ज़ल/सुभाष पाठक’ज़िया’
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नई कहानी हूँ क़िस्सा सुना सुनाया नईं/ग़ज़ल/सुभाष पाठक’ज़िया’
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है नींद एक नशा और ख़्वाब धोखा है/ग़ज़ल/सुभाष पाठक’ज़िया’
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हम ख़ुद को अक्सर यूँ समझाने लगते हैं/ग़ज़ल/सुभाष पाठक’ज़िया’
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अचेतन और चेतन मन के झगड़ों में फंसा हूँ मैं/ग़ज़ल/सुभाष पाठक’ज़िया’
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इस जहां से मिला जुला हूँ मैं/ग़ज़ल/सुभाष पाठक’ज़िया’
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हवा को साफ़ नदी ताल को भरे रखना/ग़ज़ल/सुभाष पाठक’ज़िया’
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