बच्चों को देखती है, दफ़्तर को देखती है/ग़ज़ल/गरिमा सक्सेना
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आदमी में आदमीयत की कमी होने लगी/ग़ज़ल/गरिमा सक्सेना
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उत्सव के दिन बहुत अकेले बैठे उत्सव/ग़ज़ल/गरिमा सक्सेना
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रोज़ ढलकर भी नहीं इक पल ढला सूरज/ग़ज़ल/गरिमा सक्सेना
रोज़ ढलकर भी नहीं इक पल ढला स... Read more.
आँखों में ख़्वाब, पाँवों में छालों को पाल कर/ग़ज़ल/गरिमा सक्सेना
आँखों में ख़्वाब, पाँवों मे&... Read more.