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मुक्तकी/गोपालदास नीरज

      1. शब्द तो शोर है, तमाशा है

शब्द तो शोर है, तमाशा है,
भाव के सिन्धु में बताशा है,
मर्म की बात होंठ से न कहो
मौन ही भावना की भाषा है ।

      1. देह तो सिर्फ साँस का घर है

देह तो सिर्फ साँस का घर है,
साँस क्या? बोलती हवा भर है,
तुम मुझे अच्छा-बुरा कुछ न कहो
आदमी वक्त का हस्ताक्षर है।

      1. आदमी ने वक्त को ललकारा है

आदमी ने वक्त को ललकारा है,
आदमी ने मौत को भी मारा है,
जीते हैं आदमी ने सारे लोक
आदमी खुद से मगर हारा है।

      1. आदमी फौलाद को पी सकता है

आदमी फौलाद को पी सकता है,
आदमी चट्टान को सी सकता है,
यह तो सब ठीक, मगर प्यार बिना
आदमी कहीं भी न जी सकता है।

      1. सपनों पै जमी गर्द बुहारी गई

सपनों पै जमी गर्द बुहारी गई,
गीतों में टंकी याद बिसारी न गई,
हर हाल में जीने का सबक सीख लिया,
पर प्यार बिना उम्र गुजारी न गई।

      1. चल रहे हैं जो उन्हें चल के डगर में देखो

चल रहे हैं जो उन्हें चल के डगर में देखो,
तैरने वाले को तट से न, लहर से देखो,
देखना ही है जो इन्सान में भगवान तुम्हें,
आदमी को ही आदमी की नज़र से देखो।

      1. जहाँ भी जाता हूँ सुनसान नज़र आता है

जहाँ भी जाता हूँ सुनसान नज़र आता है,
हरेक सिम्त बियाबान नज़र आता है,
कैसा है वक्त जो इस दिन के उजाले में भी
नहीं इन्सान को इन्सान नज़र आता है।

      1. चाह तन-मन को गुनहगार बना देती है

चाह तन-मन को गुनहगार बना देती है,
बाग़-के-बाग़ को बीमार बना देती है,
भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालो!
भूख इन्सान को गद्दार बना देती है।

      1. क्या करेगा प्यार वह भगवान को

क्या करेगा प्यार वह भगवान को?
क्या करेगा प्यार वह ईमान को?
जन्म लेकर गोद में इन्सान की
प्यार न कर पाया जो इन्सान को।

      1. डबडबाया है जो आँसू यह मेरी आँखों में

डबडबाया है जो आँसू यह मेरी आँखों में
इसको तेरे किसी अहसान की दरकार नहीं,
जो इबादत भी करे, और शिकायत भी को
प्यार का है वह बहाना तो मगर प्यार नहीं!

      1. कभी शरमाये हुए और कभी घबराए

कभी शरमाये हुए और कभी घबराए,
रोज़ तुम मेरे खयालों में इस तरह आए,
जैसे बरसात के दिन सूने किसी खंडहर में
चाँद बादल से कभी झाँके, कभी छुप जाए।

      1. शोख़ शीशा सलिल नहीं होता

शोख़ शीशा सलिल नहीं होता,
अंश है यह अखिल नहीं होता,
बावले! किसको सुनाता है व्यथा
रूप के पास दिल नहीं होता।

      1. कहना चाहा तो मगर बात बताई न गई

कहना चाहा तो मगर बात बताई न गई,
दर्द को शब्द की पोशाक पिन्हाई न गई,
और फिर खत्म हुई ऐसे कहानी अपनी
उनसे सुनते न बनी, हमसे सुनाई न गई।

      1. हर जगह साँस ये रही मगर रही न गई

हर जगह साँस ये रही मगर रही न गई,
बात ऐसी थी कही तो मगर कही न गई,
इस तरह गुजरी तेरी याद में हर एक सुबह
पीर ज्यों कोई सही तो हो पर सहीं न गई!

      1. आह वह रूप, वह यौवन, वह निरी शोख छटा

आह वह रूप, वह यौवन, वह निरी शोख छटा
जिसने देखी न तेरे दर से वो फिर दूर हटा,
गोरे मुखड़े पै वो बिखरी हुई बालों की लटें
चाँद को जैसे लिये गोद हो सावन की घटा।

      1. तन हो न गुनहगार यह कब मुमकिन है

तन हो न गुनहगार यह कब मुमकिन है?
मन हो न खतावार यह कब मुमकिन है?
जब रूप लजा करके उठाए घूँघट
यौवन न करे प्यार यह कब मुमक्लि है?

      1. आग है ये तो न ये आग कभी भी कम हो

आग है ये तो न ये आग कभी भी कम हो,
रूप है ये तो न ये रुप कभी भी खम हो,
काले बालों में वह मोती की लड़ी क्या कहना
जैसे मावस के झरोखे में खड़ी पूनम हो ।

      1. सुख की ये घड़ी एक तो जी लेने दो

सुख की ये घड़ी एक तो जी लेने दो,
चादर ये फटी स्वप्न की सीं लेने दो,
ऐसी तो घटा फिर न कभी छाएगी
प्याला न सही, आँख से पी लेने दो ।

      1. है नहीं कोई कमी, पर कुछ कमी लगती है दोस्त

है नहीं कोई कमी, पर कुछ कमी लगती है दोस्त !
मुस्कराती आँख भी हर शबनमी लगती है दोस्त !
है बिछुड़ तुम से गई जब से उमर की राधिका
तब से अपनी सँस तक पी अजनबी लगती है दोस्त !

      1. मेरी आवाज़ में तेरी लहर मालूम होती है

मेरी आवाज़ में तेरी लहर मालूम होती है,
शबे-ग़म में उतरती-सी सहर मालूम होती है,
निगाहें चार जब से हो गईं तुझसे अरे जालिम?
मुझे मेरी नज़र तेरी नज़र मालूम होती है।

      1. काटनी थी ही सो यह कट ही गई उम्र मगर

काटनी थी ही सो यह कट ही गई उम्र मगर
इस तरह गुजरी हरेक रात सुबह लाने में,
जैसे फट जाय कोई कीमती रेशमी साड़ी
नीचे पल्लू के जमीं गर्द के धुलवाने में!

      1. दिन जो निकला तो पुकारों ने परेशान किया

दिन जो निकला तो पुकारों ने परेशान किया!
रात आई तो सितारों ने परेशान किया,
गर्ज़ है ये कि परेशानी कभी कम न हुई
बीता पतझर तो बहारों ने परेशान किया!

      1. जहाँ मैं हूँ वहाँ उम्मीद पैहम टूट जाती है

जहाँ मैं हूँ वहाँ उम्मीद पैहम टूट जाती है,
जवानी हाथ मल-मलकर वहाँ आँसू बहाती है,
चमन है, फूल है, कलियाँ हैं, खुशबू भी है, रंगत भी
मगर आकर वहाँ बुलबुल तराने भूल जाती है।

      1. रत्न तो लाख मिले, एक ह्रदय-धन न मिला

रत्न तो लाख मिले, एक ह्रदय-धन न मिला,
दर्द हर वक्त मिला, चैन किसी क्षण न मिला,
खोजते – खोजते ढल धूप गई जीवन की
दूसरी बार सगर लौट के बचपन न मिला।

      1. उड़ने के लिए ही जो है बनी, वह गंध सदा उड़ती ही है

उड़ने के लिए ही जो है बनी, वह गंध सदा उड़ती ही है,
चढ़ने के लिए ही जो है बनी, वह धूप सदा चढ़ती ही है,
अफसोस न कर सलवट है पड़ी गर तेरे उजले कुरते में
कपड़ा तो है कपड़ा ही, आखिर कपड़ों पै शिकन पड़ती ही है ।

      1. सुख न सहचर ही, लुटेरा भी हुआ करता है

सुख न सहचर ही, लुटेरा भी हुआ करता है,
खुशी में ग़म का बसेरा भी हुआ करता है,
अपनी किस्मत की सियाही को कोसने वालो!
चाँद के साथ अंधेरा भी हुआ करता है।

      1. लहर गई तो गई, तोड़ किनारे भी गई

लहर गई तो गई, तोड़ किनारे भी गई,
छुटी उम्मीद तो सब छोड़ सहारे भी गई,
सुख की ऐ रात ! तू जाती तो न कोई ग़म था
मगर न तू ही गई लेके सितारे भी गई!

      1. हर दिवस शाम में ढल जाता है

हर दिवस शाम में ढल जाता है,
हर तिमिर धूप में जल जाता है,
मेरे मन ! इस तरह न हिम्मत हार
वक्त कैसा हो, बदल जाता है।

      1. हर गली गुनगुनाना ग़लती है

हर गली गुनगुनाना ग़लती है,
हर समय मुस्कुराना ग़लती है,
प्यार बस एक बार होता है
हर जगह सिर झुकाना ग़लती है।

      1. दीप कहने से नहीं जलता है

दीप कहने से नहीं जलता है,
फूल हँसने से नहीं खिलता है,
प्यार रो-रो के माँगने वाले!
प्यार मांगे से नहीं मिलता है।

      1. हाँ तो लिखते हो, किताबों को मगर मत चाटो

हाँ तो लिखते हो, किताबों को मगर मत चाटो,
कैंची है हाथ तो आँसू के पंख मत काटो,
खुद से आज़ाद ही होने की कला है कविता
दर्द को जाके खरीदो और प्यार को बाँटो।

      1. गीत आकाश को धरती का सुनाना है मुझे

गीत आकाश को धरती का सुनाना है मुझे,
हर अँधेरे को उजाले में बुलाना है मुझे,
फूल की गंध से तलवार को सर करना है
और गा-गाके पहाड़ों को जगाना है मुझे।

      1. हम उबलते हैं तो भूचाल उबल जाते हैं

हम उबलते हैं तो भूचाल उबल जाते हैं,
हम मचलते हैं तो तूफान मचल जाते हैं,
हमको कोशिश न बदलने की करो तुम भाई!
हम बदलते हैं तो इतिहास बदल जाते हैं!

      1. मंझधार में कूदूँ तो वह साहिल बन जाय

मंझधार में कूदूँ तो वह साहिल बन जाय,
पत्थर को भी जो छू लूँ तो वह रत्न बन जाय,
गर होश में ही अपने रहूँ मैं ऐ दोस्त !
जिस ठाँव रुके पाँव वो मंजिल बन जाय !

      1. हर रीते हुए पत्र को हम भर देंगे

हर रीते हुए पत्र को हम भर देंगे,
हर तम की मुँडेरों पै सुबह धर देंगे,
तुम खोजा करो स्वर्ग गगन में जाकर
हम स्वर्ग इसी भूमि को लाकर देंगे।

      1. खोजने तुम को गया मठ में विकल अरमान मेरा

खोजने तुम को गया मठ में विकल अरमान मेरा,
पत्थरों पर झुक न पाया पर सरल शिशु-ध्यान मेरा,
जन-जनार्दन की चरण-रज किन्तु जब सिर पर चढ़ाई
मिल गया मुझको सहज उस धूल में भगवान मेरा।

      1. गो परीशाँ हूँ बहुत रूप की इस बस्ती में

गो परीशाँ हूँ बहुत रूप की इस बस्ती में,
फिर भी इस बाग़ से बाहर न निकल पाता हूँ
ढीठ काँटों से जो दामन मैं बचाता हूँ तो
शोख फूलों की निगाहों से उलझ जाता हूँ।

      1. रागिनी एक थी आँसू की मेरी उम्र मगर

रागिनी एक थी आँसू की मेरी उम्र मगर,
रही जहाँ भी वहाँ रोशनी लुटा के रही,
और जब खत्म हुई मेरी कहानी जग में
आधी दीपक ने कही, आधी पतंगे ने कही ।

      1. याद बन-बन के कहानी लौटी

याद बन-बन के कहानी लौटी,
साँस हो-हो के बिरानी लौटी,
लौटे सब गम जो दिए दुनिया ने
किन्तु जाकर न जवानी लौटी ।

      1. हाथों में वो शोणित से भरा घट लेगा

हाथों में वो शोणित से भरा घट लेगा,
कांधे पै उजालों का अरुण पट लेगा
ए तख़्त-नशीनो ! न यूँ ग़फलत में रहो
इतिहास अभी फिर कोई करवट लेगा।

      1. जल्दी ही बहुत पाप का घट भरता है

जल्दी ही बहुत पाप का घट भरता है-
तब अपने भी साये से बशर डरता है,
तू ज़ुल्म करे और न मिटे-नामुमक़िन
रे वक्त किसी को न क्षमा करता है।

      1. इस शहर की हर एक सड़क गन्दी है

इस शहर की हर एक सड़क गन्दी है
सूरज की किरन भी तो यहाँ अंधी है
तू चम्पा चमेली का यहाँ ज़िक्र न कर
इस बाग़ में हर खुशबू पे पाबन्दी है।

      1. वक्त की चाल है अजब प्यारे

वक्त की चाल है अजब प्यारे
पल में प्यादे वजीर बनते हैं
और कभी यक ज़रा-सी गलती पर
शाहज़ादे फ़क़ीर बनते हैं।

      1. कोई जाने नहीं वो किसकी है

कोई जाने नहीं वो किसकी है
वो न तेरे न मेरे बस की है
राजसत्ता तो एक वेश्या है
आज इसकी तो कल वो उसकी है

      1. नेताओं ने गांधी की क़सम तक बेची

नेताओं ने गांधी की क़सम तक बेची
कवियों ने निराला की क़लम तक बेची
मत पूछ कि इस दौर में क्या-क्या न बिका
इन्सानों ने आँखों की शरम तक बेची।

      1. तू कवि है तो फिर काव्य को बदनाम न कर

तू कवि है तो फिर काव्य को बदनाम न कर
जो मन में गन्दगी है उसे आम न कर
कविता तू जिसे कहता वो बेटी है तेरी
चौराहे पै लाकर उसे नीलाम न कर ।

      1. क्या कहें यार हमें यारों ने क्या-क्या समझा

क्या कहें यार हमें यारों ने क्या-क्या समझा
क़तरा समझा तो किसी ने हमें दरिया समझा
सब ने समझा हमें वैसा जिसे जैसा भाया
और जो हम थे वही तो न ज़माना समझा।

लेखक

  • गोपालदास 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के पुरावली गाँव में हुआ था। एटा से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया, फिर एक सिनेमाघर में नौकरी की। कई छोटी-मोटी नौकरीयाँ करते हुए 1953 में हिंदी साहित्य से एम.ए. किया और अध्यापन कार्य से संबद्ध हुए। इस बीच कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी थी। इसी लोकप्रियता के कारण कालांतर में उन्हें बंबई से एक फ़िल्म के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव मिला और फिर यह सिलसिला आगे बढ़ता गया। वह वहाँ भी अत्यंत लोकप्रिय गीतकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए और उन्हें तीन बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। बाद में वह बंबई के जीवन से ऊब गए और अलीगढ़ वापस लौट आए। उनका पहला काव्य-संग्रह ‘संघर्ष’ 1944 में प्रकाशित हुआ था। अंतर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादल बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी, आसावरी, नदी किनारे, कारवाँ गुज़र गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिए आदि उनके प्रमुख काव्य और गीत-संग्रह हैं। वह विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार और यश भारती से सम्मानित किए गए थे। भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पदम् श्री और 2007 में पद्म भूषण से अलंकृत किया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था।

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मुक्तकी/गोपालदास नीरज

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