चलते चलते पहुँच गए हम
भाव-नगर से अर्थ-नगर में
जाने कितने और मोड़ हैं
जीवन के अनजान सफर में।
नहीं ज़िन्दगी रही ज़िन्दगी
शब्दों की दूकान हो गई,
ख़ुद पर आए शर्म हमें
मंज़िल इतनी आसान हो गई
अपने ही हाथों से हमने
आग लगा दी अपने घर में
चलते-चलते पहुँच गए हम ॥
मोती के लालच मेँ हमने
सिर्फ़ बटोरे कंकड़-पत्थर
हमेँ डूबना था आँसू में
डूबे हम फूलों में जाकर
हम ऐसे लुट गए कि जैसे
डोली लुट जाए पीहर में।
चलते-चलते पहुँच गए हम ॥
एक समय वह भी था जब
पूरे गुलशन में हम ही हम थे
गीत हमारे ही गुलाब थे
अश्क हमारे ही शबनम थे
है यश का पैबन्द सिर्फ़ अब
जीवन की मैली चादर में ।
चलते-चलते पहुँच गए हम ॥
आँसू के बाग़ों में जिसने
जाकर बोये गीत-रुबाई,
सिक्कों की धुन पर अब नाचे
उसके ही सुर की शहनाई।
सुबह गुज़ारी थी सतजुग में
शाम गुज़रती है द्वापर में
चलते-चलते पहुँच गए हम ॥
एक मोड़ था जिसने हमको
गीतों का श्रृंगार बनाया
दूजा है ये मोड़ कि जिसने
कविता को अख़बार बनाया,
मगर तीसरा मोड़ कहां है
देखूँगा आख़िरी पहर में।
चलते-चलते पहुँच गए हम
भाव-नगर से अर्थ-नगर में
गोपालदास 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के पुरावली गाँव में हुआ था। एटा से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया, फिर एक सिनेमाघर में नौकरी की। कई छोटी-मोटी नौकरीयाँ करते हुए 1953 में हिंदी साहित्य से एम.ए. किया और अध्यापन कार्य से संबद्ध हुए।
इस बीच कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी थी। इसी लोकप्रियता के कारण कालांतर में उन्हें बंबई से एक फ़िल्म के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव मिला और फिर यह सिलसिला आगे बढ़ता गया। वह वहाँ भी अत्यंत लोकप्रिय गीतकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए और उन्हें तीन बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। बाद में वह बंबई के जीवन से ऊब गए और अलीगढ़ वापस लौट आए।
उनका पहला काव्य-संग्रह ‘संघर्ष’ 1944 में प्रकाशित हुआ था। अंतर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादल बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी, आसावरी, नदी किनारे, कारवाँ गुज़र गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिए आदि उनके प्रमुख काव्य और गीत-संग्रह हैं।
वह विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार और यश भारती से सम्मानित किए गए थे। भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पदम् श्री और 2007 में पद्म भूषण से अलंकृत किया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था।