जो झुका है वह उठे अब सर उठाए,
जो रूका है वह चले नभ चूम आए,
जो लुटा है वह नए सपने सजाए,
जुल्म-शोषण को खुली देकर चुनौती,
प्यार अब तलवार को बहला रहा है।
अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है
हर छलकती आँख को वीणा थमा दो,
हर सिसकती साँस को कोयल बना दो,
हर लुटे सिंगार को पायल पिन्हा दो,
चाँदनी के कंठ में डाले भुजाएँ,
गीत फिर मधुमास लाने जा रहा है।
अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है
जा कहो तम से करे वापस सितारे,
माँग लो बढ़कर धुएँ से अब अंगारे,
बिजलियों से बोल दो घूँघट उघारे,
पहन लपटों का मुकुट काली धरा पर,
सूर्य बनकर आज श्रम मुसका रहा है।
अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है
शोषणों की हाट से लाशें हटाओ,
मरघटों को खेत की खुशबू सुँघाओं,
पतझरों में फूल के घुँघरू बजाओ,
हर कलम की नोक पर मैं देखता हूँ,
स्वर्ग का नक्शा उतरता आ रहा है।
अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है
इस तरह फिर मौत की होगी न शादी,
इस तरह फिर खून बेचेगी न चाँदी,
इस तरह फिर नीड़ निगलेगी न आँधी,
शांति का झंडा लिए कर में हिमालय,
रास्ता संसार को दिखला रहा है।
अब जमाने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है
गोपालदास 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के पुरावली गाँव में हुआ था। एटा से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया, फिर एक सिनेमाघर में नौकरी की। कई छोटी-मोटी नौकरीयाँ करते हुए 1953 में हिंदी साहित्य से एम.ए. किया और अध्यापन कार्य से संबद्ध हुए।
इस बीच कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी थी। इसी लोकप्रियता के कारण कालांतर में उन्हें बंबई से एक फ़िल्म के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव मिला और फिर यह सिलसिला आगे बढ़ता गया। वह वहाँ भी अत्यंत लोकप्रिय गीतकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए और उन्हें तीन बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। बाद में वह बंबई के जीवन से ऊब गए और अलीगढ़ वापस लौट आए।
उनका पहला काव्य-संग्रह ‘संघर्ष’ 1944 में प्रकाशित हुआ था। अंतर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादल बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी, आसावरी, नदी किनारे, कारवाँ गुज़र गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिए आदि उनके प्रमुख काव्य और गीत-संग्रह हैं।
वह विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार और यश भारती से सम्मानित किए गए थे। भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पदम् श्री और 2007 में पद्म भूषण से अलंकृत किया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था।