(इन्दिरा गाँधी की मृत्यु तथा इसके पश्चात
सिखों के कत्ले-आम पर एक प्रतिक्रिया)
मैंने उम्र भर उसके खि़ला़फ़ सोचा और लिखा है
अगर उसके शोक में सारा ही देश शामिल है
तो इस देश में से मेरा नाम काट दो
मैं ख़ूब जानता हूँ नीले सागरों तक फैले हुए
इस खेतों, खदानों और भट्ठों के भारत को
वह ठीक इसी का साधारण-सा कोई कोना था
जहाँ पहली बार
जब मज़दूर पर उठा थप्पड़ मरोड़ा गया
किसी के खुरदुरे बेनाम हाथों में
ठीक वही वक़्त था
जब इस कत्ल की साज़िश रची गयी
कोई भी पुलिस नहीं ढूँढ़ सकेगी इस साज़िश की जगह
क्योंकि ट्यूबें केवल राजधानी में जगती हैं
और खेतों, खदानों, भट्ठों का भारत
बहुत अँधेरा है
और ठीक इसी सर्द-अँधेरे में होश सँभालने पर
जीने के साथ-साथ
जब पहली बार इस जिन्दगी के बारे में सोचना शुरू किया
मैंने ख़ुद को इसके कत्ल की साज़िश में शामिल पाया
जब भी भयावह शोर के पदचिह्न देख-देख कर
मैंने ढूँढ़ना चाहा टर्रा-र्रा-ते हुए टिड्डे को
शामिल पाया है, अपनी पूरी दुनिया को
मैंने सदा ही उसे कत्ल किया है
हर परिचित व्यक्ति की छाती में से ढूँढ़कर
अगर उसके कातिलों के साथ यूँ ही सड़कों पर निपटना है
तो मेरे हिस्से की सज़ा मुझे भी मिले
मैं नहीं चाहता कि केवल इसलिए बचता रहूँ
कि मेरा पता नहीं है भजन लाल बिश्नोई1 को –
इसका जो भी नाम है – गुण्डों की सल्तनत का
मैं इसका नागरिक होने पर थूकता हूँ
मैं उस पायलट की
कपटी आँखों में चुभता भारत हूँ
हाँ, मैं भारत हूँ चुभता हुआ उसकी आँखों में
अगर उसका अपना कोई खानदानी भारत है
तो मेरा नाम उसमें भी अभी काट दो
1 भजन लाल बिश्नोई – हरियाणा का तत्कालीन मुख्यमंत्री (नवम्बर 1984)