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बेदख़ली के लिए विनय-पत्र/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

(इन्दिरा गाँधी की मृत्यु तथा इसके पश्चात

सिखों के कत्ले-आम पर एक प्रतिक्रिया)

 

मैंने उम्र भर उसके खि़ला़फ़ सोचा और लिखा है

अगर उसके शोक में सारा ही देश शामिल है

तो इस देश में से मेरा नाम काट दो

 

मैं ख़ूब जानता हूँ नीले सागरों तक फैले हुए

इस खेतों, खदानों और भट्ठों के भारत को

वह ठीक इसी का साधारण-सा कोई कोना था

जहाँ पहली बार

जब मज़दूर पर उठा थप्पड़ मरोड़ा गया

किसी के खुरदुरे बेनाम हाथों में

ठीक वही वक़्त था

जब इस कत्ल की साज़ि‍श रची गयी

कोई भी पुलिस नहीं ढूँढ़ सकेगी इस साज़ि‍श की जगह

क्योंकि ट्यूबें केवल राजधानी में जगती हैं

और खेतों, खदानों, भट्ठों का भारत

बहुत अँधेरा है

 

और ठीक इसी सर्द-अँधेरे में होश सँभालने पर

जीने के साथ-साथ

जब पहली बार इस जि‍न्दगी के बारे में सोचना शुरू किया

मैंने ख़ुद को इसके कत्ल की साज़ि‍श में शामिल पाया

जब भी भयावह शोर के पदचिह्न देख-देख कर

मैंने ढूँढ़ना चाहा टर्रा-र्रा-ते हुए टिड्डे को

शामिल पाया है, अपनी पूरी दुनिया को

मैंने सदा ही उसे कत्ल किया है

हर परिचित व्यक्ति की छाती में से ढूँढ़कर

अगर उसके कातिलों के साथ यूँ ही सड़कों पर निपटना है

तो मेरे हिस्से की सज़ा मुझे भी मिले

मैं नहीं चाहता कि केवल इसलिए बचता रहूँ

कि मेरा पता नहीं है भजन लाल बिश्नोई1 को –

 

इसका जो भी नाम है – गुण्डों की सल्तनत का

मैं इसका नागरिक होने पर थूकता हूँ

मैं उस पायलट की

कपटी आँखों में चुभता भारत हूँ

हाँ, मैं भारत हूँ चुभता हुआ उसकी आँखों में

अगर उसका अपना कोई खानदानी भारत है

तो मेरा नाम उसमें भी अभी काट दो

 

1 भजन लाल बिश्नोई – हरियाणा का तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री (नवम्‍बर 1984)

 

लेखक

  • अवतार सिंह संधू (9 सितम्बर 1950 - 23 मार्च 1988), जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 09 सितम्बर 1950 को ग्राम तलवंडी सलेम, ज़िला जालंधर और निधन 37 साल की युवावस्था में 23 मार्च 1988 अपने गांव तलवंडी में ही हुआ था। वे गुरु नानक देव युनिवर्सिटी, अमृतसर के छात्र रहे हैं। उनकी साहित्यिक कृतियां, लौहकथा, उड्ड्दे बाजाँ मगर, साडे समियाँ विच, लड़ांगे साथी, खिल्लरे होए वर्के आदि हैं। पाश एक विद्रोही कवि थे। वे अपने निजी जीवन में बहुत बेबाक थे, और अपनी कविताओं में तो वे अपने जीवन से भी अधिक बेबाक रहे। वे घुट घुटकर, डर डरकर जीनेवालों में से बिलकुल नहीं थे। उनको सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि सबके लिए शोषण, दमन और अत्याचारों से मुक्त एक समतावादी संसार चाहिए था। यही उनका सपना था और इसके लिए आवाज़ उठाना उनकी मजबूरी थी। उनके पास कोई बीच का रास्ता नहीं था। त्रासदी यह भी कि भगतसिंह को आदर्श मानने वाले पाश को भगतसिंह के ही शहादत दिन 23 मार्च 1988 को मार दिया गया। धार्मिक कट्टरपंथ और सरकारी आतंकवाद दोनों के साथ एक ही समय लड़ने वाले पाश का वही सपना था जो भगतसिंह का था। कविताओं के लिए ही पाश को 1970 में इंदिरा गांधी सरकार ने दो साल के लिए जेल में डाला था।  

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