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तूफ़ानों ने कभी मात नहीं खायी/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

हवा का रुख बदलने पर

बहुत नाचे, बहुत उछले

जिनके शामियाने डोल चुके थे

उन्होंने ऐलान कर दिया

कि पेड़ अब शान्त हो गये हैं

कि अब तूफ़ानों का दम टूट चुका है –

 

जैसे कि जानते न हों

ऐलानों का तूफ़ानों पर कोई असर नहीं होता

जैसे कि जानते न हों

तूफ़ानों की वजह पेड़ ही नहीं होते

बल्कि वह उमस होता है

जो धरती का चेहरा रुला देता है

 

जैसे कि जानते न हों

वह उमस बहुत गहरी थी

जहाँ से तूफ़ान पैदा हुआ था

सुनो, ओ भ्रम के बेटो

हवा ने दिशा बदली है

हवा बन्द हो नहीं सकती

 

जब तक धरती का मुखड़ा

टहक गुलजार नहीं होता

तुम्हारे शामियाने आज भी गिरे

कल भी गिरे

हवा इसी दिशा में फिर चलनी है

तूफ़ानों ने कभी मात नहीं खायी

 

लेखक

  • अवतार सिंह संधू (9 सितम्बर 1950 - 23 मार्च 1988), जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 09 सितम्बर 1950 को ग्राम तलवंडी सलेम, ज़िला जालंधर और निधन 37 साल की युवावस्था में 23 मार्च 1988 अपने गांव तलवंडी में ही हुआ था। वे गुरु नानक देव युनिवर्सिटी, अमृतसर के छात्र रहे हैं। उनकी साहित्यिक कृतियां, लौहकथा, उड्ड्दे बाजाँ मगर, साडे समियाँ विच, लड़ांगे साथी, खिल्लरे होए वर्के आदि हैं। पाश एक विद्रोही कवि थे। वे अपने निजी जीवन में बहुत बेबाक थे, और अपनी कविताओं में तो वे अपने जीवन से भी अधिक बेबाक रहे। वे घुट घुटकर, डर डरकर जीनेवालों में से बिलकुल नहीं थे। उनको सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि सबके लिए शोषण, दमन और अत्याचारों से मुक्त एक समतावादी संसार चाहिए था। यही उनका सपना था और इसके लिए आवाज़ उठाना उनकी मजबूरी थी। उनके पास कोई बीच का रास्ता नहीं था। त्रासदी यह भी कि भगतसिंह को आदर्श मानने वाले पाश को भगतसिंह के ही शहादत दिन 23 मार्च 1988 को मार दिया गया। धार्मिक कट्टरपंथ और सरकारी आतंकवाद दोनों के साथ एक ही समय लड़ने वाले पाश का वही सपना था जो भगतसिंह का था। कविताओं के लिए ही पाश को 1970 में इंदिरा गांधी सरकार ने दो साल के लिए जेल में डाला था।  

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