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मेरे महबूब के घर रंग है री/अमीर खुसरो

आज रंग है ऐ माँ रंग है री, मेरे महबूब के घर रंग है री।
अरे अल्लाह तू है हर, मेरे महबूब के घर रंग है री।

मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया।
अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया।
कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया, मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया।
आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया। वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।

अरे ऐ री सखी री, वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, आहे, आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है री, वो तो मुँह माँगे बर संग है री।

निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो, जग उजियारो जगत उजियारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है री। मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया।
गंज शकर मोरे संग है री। मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखयो सखी री।
मैं तो ऐसी रंग। देस-बदेस में ढूढ़ फिरी हूँ, देस-बदेस में।
आहे, आहे आहे वा, ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।

सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा। इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री। आज रंग है ए माँ रंग है री।

ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन। मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री। मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी। देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है ही। मेरे महबूब के घर रंग है री।

लेखक

  • अबुल हसन यमीनुदीन खुसरो (१२५३-१३२५) आम लोगों में अमीर खुसरो के नाम से प्रसिद्ध हैं । वह एक महान संगीतकार, विद्वान और कवि थे । वह सूफ़ी रहस्यवादी थे और दिल्ली वाले निजामुदीन औलिया उन के आध्यात्मिक गुरू थे । उन्होंने फ़ारसी और हिन्दवी में काव्य रचना की । उनको कव्वाली के पिता के तौर पर जाना जाता है । उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में अरबी और फ़ारसी संगीत का सुमेल करके इस को और अमीर किया । उन्होंने संगीत में ख्याल और तराना के साथ साथ तबले की भी ईजाद की ।उन्होंने ग़ज़ल, मसनवी, कता, रुबाई दो-बेती आदि में काव्य रचना की ।उनकी मुख्य काव्य रचनायें तुहफा-तुस-सिग़र, वसतुल-हयात, ग़ुर्रातुल-कमाल, नेहायतुल-कमाल आदि हैं। उनकी हिन्दवी रचना में पहेलियाँ, दोहे, गीत आदि शामिल हैं । उन की हिन्दवी रचनायें कव्वालों, मिरासियों, भांडों और आम स्त्रियों के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँची हैं।

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