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बहुत रही बाबुल घर दुल्हन/कविता/अमीर खुसरो

बहुत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तोरे पी ने बुलाई।
बहुत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई।
न्हाय धोय के बस्तर पहिरे, सब ही सिंगार बनाई।
बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई।
चार कहार मिल डोलिया उठाई, संग परोहत नाई।
चले ही बनेगी होत कहाँ है, नैनन नीर बहाई।
अन्त बिदा हो चलि है दुल्हिन, काहू कि कछु न बने आई।
मौज-खुसी सब देखत रह गए, मात पिता और भाई।
मोरी कौन संग लगन धराई, धन-धन तेरि है खुदाई।
बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्ही, नेह की मिसरी खिलाई।
अंगुरि पकरि मोरा पहुँचा भी पकरे, कँगना अंगूठी पहिराई।
एक के नाम कर दीनी सजनी, पर घर की जो ठहराई।
नौशा के संग मोहि कर दीन्हीं, लाज संकोच मिटाई।
सोना भी दीन्हा रुपा भी दीन्हा बाबुल दिल दरियाई।
गहेल गहेली डोलति आँगन मा पकर अचानक बैठाई।
बैठत महीन कपरे पहनाये, केसर तिलक लगाई।
गुण नहीं एक औगुन बहोतेरे, कैसे नोशा रिझाई।
खुसरो चले ससुरारी सजनी संग, नहीं कोई आई।

लेखक

  • अबुल हसन यमीनुदीन खुसरो (१२५३-१३२५) आम लोगों में अमीर खुसरो के नाम से प्रसिद्ध हैं । वह एक महान संगीतकार, विद्वान और कवि थे । वह सूफ़ी रहस्यवादी थे और दिल्ली वाले निजामुदीन औलिया उन के आध्यात्मिक गुरू थे । उन्होंने फ़ारसी और हिन्दवी में काव्य रचना की । उनको कव्वाली के पिता के तौर पर जाना जाता है । उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में अरबी और फ़ारसी संगीत का सुमेल करके इस को और अमीर किया । उन्होंने संगीत में ख्याल और तराना के साथ साथ तबले की भी ईजाद की ।उन्होंने ग़ज़ल, मसनवी, कता, रुबाई दो-बेती आदि में काव्य रचना की ।उनकी मुख्य काव्य रचनायें तुहफा-तुस-सिग़र, वसतुल-हयात, ग़ुर्रातुल-कमाल, नेहायतुल-कमाल आदि हैं। उनकी हिन्दवी रचना में पहेलियाँ, दोहे, गीत आदि शामिल हैं । उन की हिन्दवी रचनायें कव्वालों, मिरासियों, भांडों और आम स्त्रियों के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँची हैं।

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