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दुसुख़ने/अमीर खुसरो

दोसुख़ने में दो कथनों या उक्तियों का एक ही उत्तर होता है।
इसका मूल आधार भी शब्द के दो-दो अर्थ हैं:

अनार क्यों न चखा ?
वज़ीर क्यों न रखा ?
(उत्तर=दाना न था (अनार का दाना और दाना=बुद्धिमान)

गोश्त क्यों न खाया ?
डोम क्यों न गाया ?
(उत्तर=गला न था)
मांस कच्चा था, गला हुआ नहीं था,
अत: खाया नहीं गया।
गाने के योग्य अच्छा गला नहीं था,
अत: डोम से गाया न गया।

घर अधिंयारा क्यों ? फकीर बिगड़ा क्यों ?
(उत्तर=दिया न था)
घर में दिया यानि दीपक न होने से अंधेरा था
और फकीर को कुछ दान में दिया नहीं था,
सो वह बिगाड़ गया।

जूता पहना नहीं
समोसा खाया नहीं
(उत्तर=तला न था)

जोगी क्यों भागा ? ढोलकी क्यों न बजी ?
(उत्तर=मढ़ी न थी)
रहने के लिए झोंपड़ी (मढ़ी) या कुटी न थी
और ढोलकी चमड़े से मढ़ी हुई नहीं थी।

तिश्नारा चे मे बायद ? (प्यासे को क्या चाहिए)
मिलाप को क्या चाहिए ?
(उत्तर=चाह (कुआँ भी और प्यार भी)

दीवार क्यों टूटी ? राह क्यों लूटी ? उत्तर=राज न था।
दीवार बनाने वाला राजमिस्री या राजगीर नहीं था।
अत: दीवार टूटी रह गई। राज्य (राज) व्यवस्था नहीं थी
अत: राह लुट गई।

पंडित प्यासा क्यों ? गधा उदास क्यों ?
(उत्तर=लोटा न था)

रोटी जली क्यों ? घोड़ा अड़ा क्यों ? पान सड़ा क्यों ?
(उत्तर=फेरा न था)
रोटी को फेरा (पलटा) नहीं गया था। अत: वह जल गई।
घोड़े की पैदाइशी आदत होती है, एक जगह खड़े होकर
फेरा लगाना। न लगा सकने की स्थिति में वह चलता
नहीं और एक जगह पर ही अड़ जाता है। पानी में पड़े
पान के पत्तों को पनवाड़ी बार-बार फेरता रहता है। इससे
पान का पत्ता सड़ता नहीं। न फेरो तो सड़ जाता है।

सितार क्यो न बजा ? औरत क्यों न नहाई ?
(उत्तर=परदा न था)
सितार के डाँड पर स, रे, ग, म आदि बजाने के लिए धातु
के मोटे तार या ताँत से बँधे रहते हैं। इन्हें परदा कहते हैं।
इसके बिना सितार नहीं बज सकता। औरत के संबंध में
पर्दा का अर्थ है, शरीर ढकने के लिए कपड़े का पर्दा।
खुसरो के समय में आजकल की तरह स्नान घर नहीं
होते थे। उन दिनों लोग नहाते समय, कपड़े का पर्दा
लगाया करते थे।

सौदागर चे मे बायद ? (सौदागर को क्या चाहिए)
बूचे(बहरे) को क्या चाहिए ?
(उत्तर=दो कान भी, दुकान भी)

शिकार ब चे मे बायद करद ? (शिकार किस चीज़ से करना चाहिए)
क़ुव्वते मग़्ज़ को क्या चाहिए ? (दिमाग़ी ताक़त को बढ़ाने के लिए क्या चाहिए)
(उत्तर=बा—दाम (जाल के साथ) और बादाम)

लेखक

  • अबुल हसन यमीनुदीन खुसरो (१२५३-१३२५) आम लोगों में अमीर खुसरो के नाम से प्रसिद्ध हैं । वह एक महान संगीतकार, विद्वान और कवि थे । वह सूफ़ी रहस्यवादी थे और दिल्ली वाले निजामुदीन औलिया उन के आध्यात्मिक गुरू थे । उन्होंने फ़ारसी और हिन्दवी में काव्य रचना की । उनको कव्वाली के पिता के तौर पर जाना जाता है । उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में अरबी और फ़ारसी संगीत का सुमेल करके इस को और अमीर किया । उन्होंने संगीत में ख्याल और तराना के साथ साथ तबले की भी ईजाद की ।उन्होंने ग़ज़ल, मसनवी, कता, रुबाई दो-बेती आदि में काव्य रचना की ।उनकी मुख्य काव्य रचनायें तुहफा-तुस-सिग़र, वसतुल-हयात, ग़ुर्रातुल-कमाल, नेहायतुल-कमाल आदि हैं। उनकी हिन्दवी रचना में पहेलियाँ, दोहे, गीत आदि शामिल हैं । उन की हिन्दवी रचनायें कव्वालों, मिरासियों, भांडों और आम स्त्रियों के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँची हैं।

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