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ढकोसले/अमीर खुसरो

काकी फूफा घर में हैं कि नायं, नायं तो नन्देऊ
पांवरो होय तो ला दे, ला कथूरा में डोराई डारि लाऊँ

खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय
आयो कुत्तो खा गयो, तू बैठी ढोल बजाय, ला पानी पिलाय

पीपल पकी पपेलियाँ, झड़ झड़ पड़े हैं बेर
सर में लगा खटाक से, वाह रे तेरी मिठास

भार भुजावन हम गए, पल्ले बाँधी ऊन
कुत्ता चरखा लै गयो, काएते फटकूँगी चून

भैंस चढ़ी बबूल पर और लप लप गूलर खाए
उतर उतर परमेश्वरी तेरा मठा सिरानों जाए

भैंस चढ़ी बबूल पर और लपलप गूलर खाय
दुम उठा के देखा तो पूरनमासी के तीन दिन

भैंस चढ़ी बिटोरी और लप लप गूलर खाए
उतर आ मेरे साँड की, कहीं हिफ्ज न फट जाए

लखु आवे लखु जावे, बड़ो कर धम्मकला
पीपर तन की न मानूँ बरतन धधरया, बड़ो कर धम्मकला

लेखक

  • अबुल हसन यमीनुदीन खुसरो (१२५३-१३२५) आम लोगों में अमीर खुसरो के नाम से प्रसिद्ध हैं । वह एक महान संगीतकार, विद्वान और कवि थे । वह सूफ़ी रहस्यवादी थे और दिल्ली वाले निजामुदीन औलिया उन के आध्यात्मिक गुरू थे । उन्होंने फ़ारसी और हिन्दवी में काव्य रचना की । उनको कव्वाली के पिता के तौर पर जाना जाता है । उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में अरबी और फ़ारसी संगीत का सुमेल करके इस को और अमीर किया । उन्होंने संगीत में ख्याल और तराना के साथ साथ तबले की भी ईजाद की ।उन्होंने ग़ज़ल, मसनवी, कता, रुबाई दो-बेती आदि में काव्य रचना की ।उनकी मुख्य काव्य रचनायें तुहफा-तुस-सिग़र, वसतुल-हयात, ग़ुर्रातुल-कमाल, नेहायतुल-कमाल आदि हैं। उनकी हिन्दवी रचना में पहेलियाँ, दोहे, गीत आदि शामिल हैं । उन की हिन्दवी रचनायें कव्वालों, मिरासियों, भांडों और आम स्त्रियों के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँची हैं।

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