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हम तो जाते अपने गाम/गीत/शैलेन्द्र

मुबारक देने आए थे, मुबारक देके जाते हैं
मिला है बहुत कुछ, सीने में जो हम लेके जाते हैं

हम तो जाते अपने गाम, अपनी राम-राम-राम
अपनी राम-राम-राम, सबको राम-राम-राम
हम तो जाते अपने गाम, अपनी राम-राम-राम
सबको राम-राम-राम

कभी जो कह ना पाए बात, वो होंठों पे अब आई
अदालत उठ चुकी है, अब करेगा कौन सुनवाई
हम तो जाते अपने गाम …

हुई हो भूल कोई तो, उसे दिल से भुला देना
कोई दीवाना था, बातों पे उसकी ध्यान क्या देना
हम तो जाते अपने गाम …

लेखक

  • शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र (30 अगस्त, 1923-14 दिसंबर 1966) हिन्दी व भोजपुरी के प्रमुख गीतकार थे। उनका जन्म रावलपिंडी में और देहान्त मुम्बई में हुआ। उन्होंने राज कपूर के साथ बहुत काम किया। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला । उनका का एकमात्र काव्य-संगह 'न्यौता और चुनौती' मई 1955 ई. में प्रकाशित हुआ । शैलेन्द्र को फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' बहुत पसंद आई। उन्होंने गीतकार के साथ निर्माता बनने की ठानी। राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर 'तीसरी कसम' बनाई।  

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