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सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसीं /गीत/शैलेन्द्र

सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसीं
हमें डर है हम खो न जाएं कहीं
सुहाना सफ़र …

ये कौन हँसता है फूलों में छूप कर
बहार बेचैन है किसकी धुन पर
कहीं गुमगुम, कहीं रुमझुम, के जैसे नाचे ज़मीं
सुहाना सफ़र …

ये गोरी नदियों का चलना उछलकर
के जैसे अल्हड़ चले पी से मिलकर
प्यारे प्यारे ये नज़ारे निखरे हैं हर कहीं
सुहाना सफ़र …

वो आसमाँ झुक रहा है ज़मीं पर
ये मिलन हमने देखा यहीं पर
मेरी दुनिया, मेरे सपने, मिलेंगे शायद यहीं
सुहाना सफ़र …

लेखक

  • शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र (30 अगस्त, 1923-14 दिसंबर 1966) हिन्दी व भोजपुरी के प्रमुख गीतकार थे। उनका जन्म रावलपिंडी में और देहान्त मुम्बई में हुआ। उन्होंने राज कपूर के साथ बहुत काम किया। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला । उनका का एकमात्र काव्य-संगह 'न्यौता और चुनौती' मई 1955 ई. में प्रकाशित हुआ । शैलेन्द्र को फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' बहुत पसंद आई। उन्होंने गीतकार के साथ निर्माता बनने की ठानी। राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर 'तीसरी कसम' बनाई।  

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