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रूह अपनी न हुई जिस्म भी अपना न हुआ/ग़ज़ल/रचना निर्मल

रूह अपनी न हुई जिस्म भी अपना न हुआ
काट दी उम्र जहाँ वो भी हमारा न हुआ 

मिल गईं ख़ाक में सब आसमाँ उनका न हुआ
जिन पतंगों का तेरे शह्र में जाना न हुआ

घर का हर शख़्स मिलनसार था पर जाने क्यों
बात जिससे मैं कहूँ मन की वो रिश्ता न हुआ

पूछती रहतीं हैं ख़ामोश निगाहें मुझसे
क्यों मेरी आँखों का सपना कभी तेरा न हुआ

आँखों ने ख़्वाबों की चुपचाप मिटा दी हस्ती
ज़ह्र की सोच प जब दिल को भरोसा न हुआ

ख़ूब मसरूफ़ रखा काम में ख़ुद को "निर्मल"
दूर दिल फिर भी सितमकेश से अपना न हुआ

लेखक

  • रचना निर्मल जन्मतिथि - 05 अगस्त 1969 जन्म स्थान - पंजाब (जालंधर) शिक्षा - स्नातकोत्तर प्रकाशन- 5 साझा संग्रह उल्लेखनीय सम्मान/पुरस्कार महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, कई राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर पुरस्कार संप्रति - प्रवक्ता ( राजनीति विज्ञान) संपर्क - 202/A 3rd floor Arjun Nagar

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रूह अपनी न हुई जिस्म भी अपना न हुआ/ग़ज़ल/रचना निर्मल

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