शब ए फ़िराक़ यूँ भी ख़ुद को आज़माते हम न याद आपको करते न याद आते हम शिकन न डालते माथे प मुस्कुराते हम वतीरा आपके दिल का समझ जो जाते हम नज़र मिला के महब्बत से गर वो करते बात बदल के वक़्त का हर दौर लौट आते हम हमारे इश्क़ प उनको यक़ीन आ जाता कलाई काट के चूड़ी से जो दिखाते हम भला वो नाम सँजोए कहाँ तलक तारीख़ कभी उकेरते जिसको कभी मिटाते हम ख़ुदा का रह्म ओ करम हमको भी अता होता कभी जो सच के लिए इक क़दम बढ़ाते हम निकाल पाए न अपनी ज़बाँ से काँटे वो मिला के शह्द में कितनी दवा पिलाते हम तलाश करते कहाँ तक गली गली उनको ख़बर जब अपने ही अंतस की रख न पाते हम कभी न जान की परवाह हमने की “निर्मल” जब उठती लहरों के तूफ़ाँ से लड़ने जाते हम
यूँ भी ख़ुद को आज़माते हम/ग़ज़ल/रचना निर्मल