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यूँ भी ख़ुद को आज़माते हम/ग़ज़ल/रचना निर्मल

शब ए फ़िराक़  यूँ भी ख़ुद को आज़माते हम 
न याद आपको करते न याद आते हम 

शिकन न डालते माथे प मुस्कुराते हम 
वतीरा आपके दिल का समझ जो जाते हम

नज़र मिला के महब्बत से गर वो करते बात 
बदल के वक़्त का हर दौर लौट आते हम 

हमारे इश्क़ प उनको यक़ीन आ जाता 
कलाई काट के चूड़ी से जो दिखाते हम

भला वो नाम सँजोए कहाँ तलक तारीख़
कभी उकेरते जिसको कभी मिटाते हम

ख़ुदा का रह्म ओ करम हमको भी अता होता
कभी जो सच के लिए इक क़दम बढ़ाते हम

निकाल पाए न अपनी ज़बाँ से काँटे वो
मिला के शह्द में कितनी दवा पिलाते हम

तलाश करते कहाँ तक गली गली उनको
ख़बर जब अपने ही अंतस की रख न पाते हम

कभी न जान की परवाह हमने की “निर्मल” 
जब उठती लहरों के तूफ़ाँ से लड़ने जाते हम

लेखक

  • रचना निर्मल जन्मतिथि - 05 अगस्त 1969 जन्म स्थान - पंजाब (जालंधर) शिक्षा - स्नातकोत्तर प्रकाशन- 5 साझा संग्रह उल्लेखनीय सम्मान/पुरस्कार महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, कई राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर पुरस्कार संप्रति - प्रवक्ता ( राजनीति विज्ञान) संपर्क - 202/A 3rd floor Arjun Nagar

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