+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

क़िस्से में रहती है/ग़ज़ल/रचना निर्मल

ख़यालों की बना कर डोर हर क़िस्से में रहती है 
तमन्ना हर घड़ी इस दिल को उकसाने में रहती है

गुज़र कर हर घड़ी माज़ी के अफ़्साने में रहती है
वो आप को हर वक़्त दुहराने में रहती है

कहाँ उसको दिखाई देगा अपना चाक पैराहन
जो बस हर वक़्त उलझी ज़ुल्फ़ें सुलझाने में रहती है

यही सब सोच कर उम्मीद को ज़िंदा रखा दिल में 
सहर की आँच भी कुछ देर तो तारे में रहती है

भला इस्लाह उसकी काम क्या आएगी अपने जो 
सुलझती बात को भी यार उलझाने में रहती है

तू माने या न माने पर हक़ीक़त है यही “निर्मल”
समझ अच्छे बुरे की उसके हर बंदे में रहती है

लेखक

  • रचना निर्मल जन्मतिथि - 05 अगस्त 1969 जन्म स्थान - पंजाब (जालंधर) शिक्षा - स्नातकोत्तर प्रकाशन- 5 साझा संग्रह उल्लेखनीय सम्मान/पुरस्कार महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, कई राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर पुरस्कार संप्रति - प्रवक्ता ( राजनीति विज्ञान) संपर्क - 202/A 3rd floor Arjun Nagar

    View all posts
क़िस्से में रहती है/ग़ज़ल/रचना निर्मल

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *