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घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है/अदम गोंडवी

घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है ।
बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है ।

भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारिन-सी,
ये सुब‍हे-फ़रवरी बीमार पत्नी से भी पीली है ।

बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल के सूखे दरिया में,
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है ।

सुलगते ज़िस्म की गर्मी का फिर एहसास कैसे हो,
मुहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है ।

लेखक

  • अदम गोंडवी का मूलनाम रामनाथ सिंह था इनका जन्म जन्म 22 अक्टूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले के अट्टा परसपुर गाँव में हुआ। उनका मूल नाम रामनाथ सिंह था, काव्य-जगत में ‘अदम गोंडवी’ नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्हें हिंदी में दुष्यंत कुमार के बाद दूसरा सबसे लोकप्रिय कवि-ग़ज़लकार माना जाता है। उनकी कविता ‘मनुष्यता की मातृभाषा’ में निर्धनों, वंचितों, दलितों, श्रमिकों और उत्पीड़न का शिकार स्त्रियों की फ़रियाद लेकर आती है। इस रूप में वह ‘जनता के कवि’ होने की हैसियत रखते हैं। उनकी कविताएँ समकालीन सामाजिक-राजनीतिक समय पर मारक टिप्पणी की सूरत में दख़ल रखती हैं। व्यंग्य उनका हथियार है और प्रतिरोध उनका तेवर। समकालीन सामाजिक-राजनीतिक विडंबना और विद्रूपता पर उनके पास असरदार और यादगार कविताएँ हैं। सामाजिक-राजनीतिक विमर्श में उनके ग़ज़ल की पंक्तियाँ बार-बार उद्धृत होती रहती हैं, मसलन यह— आइए महसूस करिए ज़िंदगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आप को ‘धरती की सतह पर’, ‘समय से मुठभेड़’ और ‘गर्म रोटी की महक’ उनके तीन कविता-ग़ज़ल-संग्रह हैं। 1998 में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने दुष्यंत कुमार पुरस्कार से सम्मानित किया। हिंदी के साथ ही अवधी में उनके योगदान के लिए उन्हें माटी रतन सम्मान से नवाज़ा गया। दिसंबर 18, 2011 को उदर रोग से उनकी मृत्यु हो गई।

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